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बुधवार, 10 जून 2015

मंगलवार, 9 जून 2015

अँधेरे कुएँ का मज़ा

मैं ही मैं हूँ
और कोई नहीं है
नीरज कुमार झा

कुछ बचा नहीं है

चिपक गए मुखौटे को उतारा है
शायद चेहरा सा कुछ बचा  नहीं है

नीरज कुमार झा

बेहाली के बोल


मैंने बन्दों में ख़ुदा देखा 
वे सच के ख़ुदा निकले 

मैं तो खुद में खोया था 
खोजकर लोग मेरे खोट गिना गए 

मैं अपनी बेअक़्ली से बेहाल 
लोग गुरुर मुझमें अक़्ल का होना बता गए 

सफ़ाई से ख़ुद से ही झूठ बोल जाना 
ऊपर वाले ये हुनर मुझे भी दे दे 

ऊपर वाले तू मुझ पे भी मेहरबानी कर दे 
थोड़ी बेईमानी, थोड़ा फ़रेब, थोड़ी चालबाज़ी मेरी फ़ितरत  कर दे 









रविवार, 7 जून 2015

आदमी हूँ ?

चिलचिलाती धूप
करकराती सर्दी
मूसलाधार बौछारों में
एक आदमी
एक तरफ़ है
दूसरी तरफ़
एक आदमी मैं  हूँ ?
एक तरफ़
एक आदमी है
भूखा
अधनंगा
बेघर
बीमारी में बिना दवा
बेनाम जिंदगी में
अनगिना मौत में
दूसरी तरफ
एक आदमी मैं हूँ ?

नीरज कुमार झा

झूठ की पौ-बारह



झूठ की पौ-बारह है
निर्वस्त्र घूम रहा
तारीफ़
उसके कपड़ों की हो रही है

नीरज कुमार झा

शनिवार, 6 जून 2015

साथ हो तो कोई बात है

ऊँचे झरोखे से झलक दिखा जाते हो 
हम भी जयकारे कर रह जाते हैं 
यह तो कोई बात नहीं हुई 
साथ हों बातें हों तो कोई बात है


नीरज कुमार झा 

अच्छा है


धूप  का नहीं

पुतलियों की अवारगी
का बहाना है
अच्छा है
आँखों में नहीं चुभती
आँखें हैं

नीरज कुमार झा

गुरुवार, 4 जून 2015

उफनती दरिया में तैर रहे हो

उफनती दरिया में तैर रहे हो
छूटते किनारों की अनदेखी तो न करो
तूफानों में उड़ान भर रहे हो
नीचे की जमीन की याद तो रखो
झूठ से लड़ नहीं सकते
इसकी पैरोकारी तो न करो
सच की आँखों में झाँक  नहीं सकते
लेकिन इससे नफ़रत तो न करो

नीरज कुमार झा

सॉरी

मैं भूत हूँ
तुम्हारी मरी अंतरात्मा का
मेरा शरीर नहीं है
मेरा अस्तित्व नहीं है
फिर भी अँधेरी रातों में
तुम डर जाते हो
मेरी वजह से
सॉरी

नीरज कुमार झा

मत लगा तोहमत चिरागों पे

किवाड़ भले ही सूखी लकड़ी के
दहलीज़ पर दिये रखे जाते हैं
झोपड़े भले ही फूस के
चिराग से रोशन होते हैं
मत लगा तोहमत चिरागों पे
घर नहीं जला करते चिरागों से
काबू कर आग मन की
घर इसी से ख़ाक होते हैं

नीरज कुमार झा