tag:blogger.com,1999:blog-1375421359384278850.post5235868309223926445..comments2023-12-11T23:46:31.119+05:30Comments on मेरा पक्ष: टुकड़ों का शहरNiraj Kumar Jhahttp://www.blogger.com/profile/04394878135426982858noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-1375421359384278850.post-27012262486578932742010-06-13T17:55:22.264+05:302010-06-13T17:55:22.264+05:30जीते हैं परतों में
परतदार ज़िंदगी
ख़ुद को नहीं जा...जीते हैं परतों में <br />परतदार ज़िंदगी<br />ख़ुद को नहीं जानते लोग<br />खदक रहा शहर बरसों से <br />लोथड़े हो गये टुकड़े<br />अलग हो रहीं पपड़ियाँ <br />लेकिन वे पिघलती नहीं <br />घुलती नहीं <br /><br />खासकर इन पंक्तियों ने रचना को एक अलग ही ऊँचाइयों पर पहुंचा दिया है शब्द नहीं हैं इनकी तारीफ के लिए मेरे पास...बहुत सुन्दर..संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1375421359384278850.post-18235726056120199462010-06-13T17:51:23.059+05:302010-06-13T17:51:23.059+05:30सूक्ष्म पर बेहद प्रभावशाली कविता...सुंदर अभिव्यक्त...सूक्ष्म पर बेहद प्रभावशाली कविता...सुंदर अभिव्यक्ति..प्रस्तुति के लिए आभार जीसंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.com