मेरा पक्ष
नीरज कुमार झा
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गुरुवार, 27 जून 2024
अनकहा जीवन
कहना है कुछ
कह जाता कुछ और
अपने लिए भाषा ही नहीं बनी
भाषा उतनी ही है
जिससे चलती विचारधाराएँ
जीवनियाँ तो लिख जाती हैं
जीवन अनकहा रह जाता है
नीरज कुमार झा
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