कमरे के कोने में रखा है प्लास्टिक का एक गमला
नक़ली मिट्टी में लगा है नक़ली पौधा
फूलों पर फरफरा रही हैं कुछेक मशीनी तितलियाँ
गमला, मिट्टी, पौधा, फूल और तितलियाँ
उनकी असलियत घर के मालिक बताते हैं
वैसे सभी बिलकुल असल दिखते हैं
मैं शक की निगाहों से
देखता हूँ पास खेलते बच्चे को
फ़िर झटके सा अपना ही ख्याल आता है
क्या मैं भी चार्ज कर छोड़ा गया कोई मशीन हूँ
जिसमें भर दिया गया हो अहसास अतीत के घटने का
और बोध भविष्य के होने का
मुझे संदेह हो रहा है अपने होने पर
कहीं कृत्रिम तो नहीं है मेरी चेतना
- नीरज कुमार झा