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बुधवार, 11 जनवरी 2012

समय लगेगा इस संकट को दूर करने में

फूहड़पन को फूहड़ता से लेना 
नहीं है बुद्धिमानी 
नहीं रह गयी यह पहचान ओछेपन की
यही है अब मुख्यधारा 
इसकी अवहेलना है घाटे का सौदा 
विरोध इसका नहीं खतरे से खाली 


मसखरे, मवाली और शातिर अपराधी
इन्हें इन नामों से अब  नहीं जाना जाता
वे हैं अब कर्णधार 
समाज के अभिभावक  
सामूहिक मामलों के मालिक 


फूहड़ता और उद्दंडता ही खरा है 
बाँकी  के आचार और व्यवहार  
नहीं चलते अब खोटे  सिक्कों की तरह 
यही है  नियति अब
लोगों और समाज की 


उपेक्षा 
साहित्य की 
संस्कृति की 
कला की 
उदासीनता 
निःस्वार्थ सरोकारों के प्रति
अनधीनता के मानदण्डो के प्रति 
समुचित शिक्षा के प्रसार के प्रति 
बौद्धिकता  के  प्रति  
अब भारी  पड़ रही है


तैयार हो चुका है ऐसा बहुसंख्य 
जो है 
मानसिक रूप से विकृत
नैतिक रूप से भ्रष्ट 
और बौद्धिक रूप से दिवालिया 
यह समय है गंभीर संकट का 
समाज की समस्त सकारात्मक ऊर्जा 
लगे तब भी 
समय लगेगा इस संकट को दूर करने में


- नीरज कुमार झा 









रविवार, 8 जनवरी 2012

यह कौन है

मौन 
अतिघनीभूत मौन 
आत्मा को जड़ करता मौन 
वाचलता
खोखली वाचालता
मस्तिष्क को भन्नाती  वाचालता 
जम चुकी है चेतना
तन में घुसा है उन्माद 
लोग हैं पड़े सडकों के किनारे  
दुःख का अंत नहीं 
लेकिन भर नहीं रहा कोई आहें 
घोर पीड़ा में भी न कोई कराह रहा 
दिल भरा है  
लेकिन आँखे हैं बिलकुल सूखी 
देख रहे वे 
वाचालता के झंझावात में उड़ते
संवेदना के सूखे पत्ते
सड़को पर 
अट्टहास करते 
इठलाते मचलते लोग 
उन्मत्त नृत्य कर रहे हैं 
किनारे चीथड़ों में लिपटी 
सूनी आँखों को सड़क पर टिकाये 
यह कौन है

- नीरज कुमार झा