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मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

यह तरक्की कैसी

नफ़रत से आँखें फेर लो
बेशर्मी की बेहिसाब अमीरी ऐसी
नज़रें ना मिला सको
बेज़ार करती गरीबी ऐसी
यह  तरक्की कैसी कि
नैतिकता का निकल गया फलूदा
और मरणासन्न है मानवीयता

- नीरज कुमार झा

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