आओ, हम उसकी उपासना करें !
जो है,
वह उत्पन्न हुआ है उससे,
आओ, हम उसकी उपासना करें !
है का भूलभुलैया है,
ऊपर नहीं का आकाश है।
नहीं है का निस्तार है,
है नहीं का विस्तार है,
एक चक्षु है,
दूसरी दृष्टि है,
आओ हम जटिलताओं के पार देखें!
नहीं जड़ है,
है जीवन है,
आओ, हम उस महातरु की उपासना करें!
नीरज कुमार झा
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