औपनिवेशीकरण मात्र जन और जमीन को विजित करना ही नहीं बल्कि फायदे में रहते हुए आधिपत्य को सुरक्षित रखना भी था। खर्च कम और अधिक लाभ के लिए उन्होंने रणनीतिक ज्ञानमीमांसा का उपयोग किया।
उपनिवेशवाद एक ज्ञानमीमांसात्मक परियोजना थी, जो साम्राज्यवादी हितसाधन, दूसरे शब्दों में, दाससेवा का सुख, रोमांचकारी क्रियाकलापों, और धनप्राप्ति के लिए दासों में दासत्व को लेकर गर्व, स्वामी के प्रति श्रद्धा और उनपर निर्भरता का भाव और स्थितियाँ निर्मित करता था।
दंड, वंचना और क्षुद्र पुरस्कारों का प्रयोग करते हुए उन्होंने ज्ञानमीमांसा और प्रणालियों का ऐसा इंद्रजाल बुना जिससे लोगों की ज्ञान दृष्टि बाधित हो गई और उनका मस्तिष्क अज्ञान जनित छवियों से आच्छादित रहने लगा। उन्हें इसमें अधिक सफलता इसलिए भी मिली कि लोग पूर्व से ही आधिपत्य में रह रहे थे।
इस स्थिति से मुक्ति का सतही प्रयास उस दलदल में गहरे फँसना है। इसके लिए स्वतंत्र और सशक्त ज्ञानमीमांसात्मक संयंत्र विकसित करने की आवश्यकता है।
नीरज कुमार झा
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