बच्चों को देते हैं ऐसी शिक्षा और माहौल,
जिससे मजबूत होती हैं
दीवारें उस कारा की
जिसके अन्दर हम कैद हैं.
बच्चों से हम नहीं कहते
कि हम आदर्श नहीं हैं;
आदर्श कोई और भी नहीं है.
हम नहीं कहते उन्हें
कि मत पड़ो इन झमेलों में.
उनकी ही जिम्मेदारी है
कि वे चुने अपना रास्ता,
और तय करें
क्या है अच्छा या बुरा.
हम नहीं कहते
कि हम नहीं हैं पूज्य.
मत हो नतमस्तक हमारे सामने,
और न ही प्रयास करो आज्ञा पालन की.
वे ले निर्णय अपने,
और निर्धारित करें अपने कृत्य-अकृत्य.
मत करें अनदेखी हमारी कमियों की.
हिकारत से देखें हमें भी,
और लौटाए जैसा का तैसा
हमारे अस्वीकार्य किए का.
ईज्जत करें बिना झुके
सिर्फ़ नेकनीयती की.
हमें होना चाहिए साहस कहने के लिए
कि नहीं है हम अनुकरणीय
या कोई और भी.
करना है उन्हें अनुसरण सिर्फ अपने विवेक का,
और रखना है स्वविवेक को भी संदेह के घेरे में.
हम नहीं सिखाते उन्हें
कि वे करें प्रतिकार हमारा.
हमसे करें प्रश्न,
और रहे कोशिश में हमेशा
हमें नकारने की.
हममें होनी चाहिए ईमानदारी कहने की
कि प्रभुता और दासत्व की दुनियाँ में रहकर
प्रवृत्ति बन चुकी है हमारी
सल्तनत अपनी खड़ी करने की
घर में भी.
बच्चों से हम कहें कि सब हैं बराबर,
और गैरबराबरी की हमारी हर चेष्टा पर
वे करें प्रहार
बिलकुल बेहरमी और नफ़रत से.
बड़प्पन के थोपने की हर हमारी कोशिश को
वे उधेड़ दें बिलकुल बेपरवाही से.
जब तक हम नहीं छोड़ेंगे
हक़ अपनी छोटी मिल्कियत की,
बच्चों को नहीं बनायेंगे प्रतिगामी
हम अपनी सामंती के,
तब तक हम नहीं तोड़ पायेंगे
दीवारें उस कारा की
जिसमें हम कैद हैं,
और हम बाध्य होंगे
छोड़ने को विरासत
उसी बंदी जीवन की
जो चली आ रही है
सनातन से.
- नीरज कुमार झा
नीरज जी सटीक बात कही है आपने .हमने ही अपने विचारों के कारागार में नयी पीड़ी को पहले से कैद कर लिया है उसे स्वतंत्र रूप से सोचने का अवसर दिया ही जाना चाहिए .सार्थक प्रस्तुति .आभार
जवाब देंहटाएंदोहरे मानदंड पर अच्छा व्यंग्य है ...
जवाब देंहटाएंबच्चों से कहो कि सब हैं बराबर
और गैरबराबरी की हमारी हर चेष्टा पर
तुम करो प्रहार
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएंनीरज जी... बेहतरीन रचना..
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