मैं रोया हूँ कई बार
टूटे रिश्तों को लेकर
हुआ हूँ रूआंसा कई बार
भांप कर
टूट जाने वाले रिश्तों को लेकर
पहले पता नहीं था
रिश्ता चाहे कैसा भी हो
रक्त या सम्बन्ध का
दोस्ती का या पेशे का
रिश्तों की जमीन होती है
जो हो जाती है बंजर अधिकतर
एक समय के बाद
और सूख जाते हैं रिश्तें
कुछ समय के बाद
रिश्तों की उम्र होती है
रिश्ते कुछ ही चलते हैं जीवन भर
हर रिश्तों को सहेजना नहीं होता है संभव
हर एक के लिए
- नीरज कुमार झा
भांप कर
टूट जाने वाले रिश्तों को लेकर
पहले पता नहीं था
रिश्ता चाहे कैसा भी हो
रक्त या सम्बन्ध का
दोस्ती का या पेशे का
रिश्तों की जमीन होती है
जो हो जाती है बंजर अधिकतर
एक समय के बाद
और सूख जाते हैं रिश्तें
कुछ समय के बाद
रिश्तों की उम्र होती है
रिश्ते कुछ ही चलते हैं जीवन भर
हर रिश्तों को सहेजना नहीं होता है संभव
हर एक के लिए
- नीरज कुमार झा
बिल्कुल सही कहा यही है यथार्थ्।
जवाब देंहटाएंआज के परिवेश को देखते हुए तो आपकी कविता एक दम सटीक है... लेकिन मेरा व्यक्तिगत मत है की रिश्तों की ज़मीन होती है... जो संतुलित बारिश से एक समय बाद और अधिक उपजाऊ हो जाती है... हा रिश्तों को सहेजना हर किसी के बस की बात नहीं ये सही है... क्योंकि रिश्ते समय और साथ चाहते हैं....
जवाब देंहटाएंआज कल रिश्ते निभाना जानता ही केन है सबको अपनी अपनी पड़ी है ..अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंRishto ki vyskhya karti sundar kavita.
जवाब देंहटाएंBadhai
agar aapko bhi hai talaash rishton ki khoi hui nadi ki to
use
http://fresh-cartoons.blogspot.com
par jaroor khoje.
Sundar kavita ke liye punah badhai.
जीवन की कटु सच्चाईयों से रूबरू कराती, मर्म स्पर्शी सुंदर रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.