तय है
भविष्य की पीढ़ियाँ
जब लिखेंगी इतिहास
हमें रखेंगी बर्बरों की श्रेणी में
हमारी तथाकथित सभ्यता
खर्चती है
सबसे ज़्यादा संसाधन
ध्वंस के उद्योगों पर
और हिंसा के प्रशिक्षण पर
मानवता की प्रगति बौनी है
इसकी अदमित दानवता के आगे
हमारे पंथ और तंत्र के मूल में
है अभी भी सिर्फ हिंसा
अभी भी उपेक्षित है
भारत का वसुधैव कुटुम्बकम का सन्देश
और अहिंसा का दर्शन
हमारी सभ्यता अभी भी दूर है
सत्य, अहिंसा और अनुराग के
जीवन दर्शन और शैली से
अभी भी दूर है सभ्यता
हमसे
- नीरज कुमार झा
सच कह रहे हैं आप....
जवाब देंहटाएंगंभीर चिंतन...
सादर....
बहुत सटीक अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंएक यथार्थ और दूरदर्शिता.
जवाब देंहटाएंसराहनीय.
प्रशंसनीय.