सबसे पहले
तुम व्यक्ति हो,
तुम मानवता हो,
बाद में हो तुम और कुछ,
जैसे हैं सभी.
तुम्हें नहीं जरूरत रक्षा की
या रक्षकों की.
तुम हो ही नहीं कमज़ोर.
तुम्हें सिर्फ़ ऐसा बताया गया है.
यह एक षड्यंत्र है
तुम्हें सरपरस्ती में रखने के लिए,
तुम्हें तुम्हारी मानवीयता से वंचित करने के लिए.
वे तुम्हें हर कुछ के रूप में रखना चाहते हैं,
सिवाय उसके जो तुम हो,
एक व्यक्ति, एक मानव.
तुम भी हो वही गीता वाली आत्मा,
जिसका कुछ नहीं हो सकता.
शरीर संरचना भी अलग नहीं,
यह है मात्र परस्पर पूरकता.
कलंक से इसका कोई सम्बन्ध नहीं.
समझो,
वैसा कुछ भी नहीं है,
जैसा तुम्हें महसूस होता है.
ये बनाए गए साचें हैं सिर्फ़.
तुम फोड़ सकती हो सारे साचों को.
प्रार्थना है तुमसे.
मत बने रहो तुम रणक्षेत्र.
उठो मिट्टी से.
बनो तुम अग्रिम योद्धा.
अनीति-अन्याय के विरूद्ध
चल रहा आदिम संघर्ष
कर रहा है इंतजार तुम्हारा
युगों से.
नीरज कुमार झा
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