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बुधवार, 23 अगस्त 2017

आओ! हम वाद-विवाद करें !

आओ! हम वाद-विवाद करें !
मुझे पता है कि तुम हो अटल अपने मत पर,
मैं भी प्रतिबद्ध अपने दर्शन को लेकर।
तुम पूछोगे कि क्या लाभ फिर इस वाक्-युद्ध का ?
मैं कहता हूँ कि भले ही हम नहीं स्वीकारें,
लेकिन वाद-विवाद की आग में असल चमक उठता है,
और मिलावटी पर जाता है काला।
कालिमा किसी पक्ष के हिस्से में हो,
लेकिन असल का चमकना जरूरी है ।
हाँ, समस्या एक रह ही जाती है।
वाद-विवाद रह जाता है निष्प्रभावी,
यदि किसी की मानवता गिरवी 
पर हो। 


नीरज कुमार झा

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