ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्माऽमृतं गमय।
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥
स्वतंत्रताओं का उपलब्ध होना स्वाभाविक स्थिति नहीं है. स्वतंत्रताओं के अर्जन, विस्तार, और अवधारण के लिए निरंतर प्रयास करना होता है. इसके लिए आवश्यक है कि नागरिक विज्ञ, सुधी, और सक्रिय हों. सबसे महत्वपूर्ण है आचरण में दायित्व भाव. नितांत निजी जीवन, यहाँ तक कि मनन में भी, से लेकर सार्वजनिक जीवन तक प्रत्येक जन का आचरण दायित्वबोध से पूर्ण और गरिमामय हो. जब स्वतंत्रताओं का दुरुपयोग होता है या स्वतंत्रताओं के प्रति उपेक्षा का भाव प्रबल हो जाता है तो स्वतंत्रताओं का क्षरण रोका जाना संभव नहीं होता है. जीवन में गंभीरता का अभाव, जो विचार और व्यवहार में फूहड़ता और उच्छृंखलता के रूप में परिलक्षित होता है, पराधीनता को स्पष्ट निमंत्रण है.
अनधीनता की स्थिति और प्राप्ति के हेतु की समझ के लिए दृष्टिकोण में वैज्ञानिकता की विद्यमानता अपरिहार्य है. चुनौती और भी विकट हो जाती है जब छद्मज्ञान प्रबल स्थिति में हो. छद्मज्ञान का कुचक्र दुष्टों तथा प्रपंचियों के दुष्प्रचार और हिंसावाद के द्वारा रक्षित होता है. ऐसी स्थिति में लोग ज्ञान से ही भयभीत रहते हैं. ज्ञान की व्यापकता ही अनधीनता का जीवन संभव बनाती है. ज्ञान की व्यापकता के लिए ज्ञान के प्रति हमारी सजगता और इसकी स्थापना के लिए तत्परता में किसी तरह की कमी और या उनको लेकर किसी तरह का प्रमाद या भीरूता हमारे स्वयं और समाज दोनों के लिए ही घातक है.
नीरज कुमार झा
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