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सोमवार, 15 अगस्त 2022

75 वर्ष

हम साक्षी हैं और सहभागी भी। इन पचहत्तर वर्षों में हमने दुनियाँ की महानतम क्रांति को जीया है। एक महान सभ्यता सदियों के दोहन और अवमानना के गर्त से गणतंत्र के रूप में पुनर्नवा हो उठती है और अपने ध्वज से सारे आकाश को आच्छादित कर देती है। यह सम्पूर्ण मानवता के इतिहास का सबसे अद्भूत अध्याय है। मानवजाति का छठा हिस्सा जो बारम्बार आक्रमणों, नरसंहारों, आंतरिक कलहों, अकालों, महामारियों, दोहन और दमन से दुनियाँ के सबसे दीन-हीन प्राणियों में गिना जाता था, न मात्र असाधारण रूप से जनतांत्रिक प्रणाली को अपनाता है बल्कि उसका निरंतर पोषण भी असाधारण रूप से करता है। सर्व-साधारण की गरिमा की इतनी शीघ्र व्याप्ति अन्यथा अकल्पनीय है।

भारत के ध्वज के मध्य में स्थित धर्मचक्र विश्व में पुनः गतिशील हो चुका है, जिसकी शक्ति है कोटि-कोटि जन का गरिमामय जीवन हेतु संघर्ष और इसकी दिशा है इस महान सभ्यता की सहस्राब्दियों की परंपरा से निःसृत ज्ञान। भांति-भांति के भ्रमों और बाधाओं को पार करता यह धर्मचक्र मानवता का त्राण करेगा, यह तय है। यह प्रत्येक भारतवासी से और हर मानव से स्वहित में अपेक्षित है कि वह इस चक्र का बल बने, अवरोध नहीं। धर्मविजय प्रत्येक प्राणी का जय है। हम इस महान अभियान में बराबरी से भागीदार होकर मानवता के भविष्य के इतिहास के सर्वाधिक उज्ज्वल अध्याय का लेखन करेंगे, यह भी तय है ।

नीरज कुमार झा

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