मेरे उक्त अभिव्यक्ति का उद्देश्य यह रेखांकित करना है कि व्यक्ति के व्यक्तित्व का आकलन संदर्भ के अनुसार ही होना चाहिए।
ज्ञानी व्यक्ति का बुद्धिमान नहीं होना एक व्यापक त्रासदी है। ऐसे व्यक्तियों के पास ज्ञान का विपुल भंडार होता है, लेकिन हो सकता है कि वह ज्ञान के ध्येय और प्रभाव से अनभिज्ञ हो। उसके द्वारा ज्ञान का सम्प्रेषण वास्तविकता से असंपृक्त अथवा लोकहित का प्रतिगामी हो सकता है।
ज्ञानी और मूर्ख में भेद कर पाना भी एक कठिन चुनौती है। लोग इसके लिए व्यक्ति को प्राप्त उपाधियों अथवा पद के आधार पर उसका मूल्यांकन करते हैं, जो प्रायः भ्रामक होता है।
ज्ञान का एक प्रबल पक्ष ज्ञानी व्यक्ति का सर्वहित की व्यवस्थागत विचारों से अवगत होने की स्थिति और उसके विस्तार करने की क्षमता है। मेरे विचार से ज्ञानी व्यक्ति की प्रकृति की विशिष्टता वैचारिक संवेदना है। यदि विद्वान कर्मणा भी सज्जन और जनहितैषी है, तो वही मेरे लिए महान है।
जनहितैषी विचारों में जन की प्रभुसत्ता रहे, विचारों की नहीं, यह भी जरूरी है। विचारों की आग पर लोगों का पकाया जाना ज्ञान और बुद्धि की विकृति है; और विडंबना यही है कि यही विद्वता का सर्वाधिक क्रियाशील स्वरूप है।
ज्ञान, बुद्धि, और कौशल, अथवा कौशल से युक्त होने मात्र से जीवन में सफलता मिले, यह तो लगभग एक संयोग ही है। इसके लिए एक अलग विशिष्टता की आवश्यकता पड़ती है, वह है चतुराई। यह बुद्धि का स्वहित में लक्ष्यबेधी संधान है। यह अन्य का स्रोतीकरण है। ऐसे जन स्वयं को स्वाभाविक रूप से साध्य और अन्य को साधन के रूप में प्रयोग करते हैं। उनके लिए ज्ञान भी स्वहित हेतु एक संसाधन मात्र है।
नीरज कुमार झा
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