लोग गंदगी फैलाते हैं। गंदगी में रहना उन्हें असहज नहीं करता है।
ऐसा क्यों है?
यह मुद्दा समाजशास्त्रीय इतिहास से जुड़ा है।
यह इतिहास जनित मानसिकता है। दीर्घकालीन अधीनता के दौरान व्यापक और निरंतर उत्पीड़न और दोहन के कारण सामूहिक अस्तित्व के प्रति उपेक्षा का भाव लोगों का मानस बन गया। व्यक्ति अभी भी जीवन की परिस्थितियों पर नियंत्रण करने के स्थान पर उनके समक्ष अपने को निरूपाय पाता है। वह भले ही शारीरिक शुचिता के प्रति सजग हो लेकिन स्थानिक स्वच्छता के प्रति वह उदासीन रहता है।
नीरज कुमार झा
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