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बुधवार, 22 जनवरी 2025

सभ्यता संस्कार

कुम्भ महानता से भी महान है। यह प्राणवान सभ्यता का स्पंदन है। यह जीवन का महोत्सव है। यह हर पीढ़ी का सभ्यता संस्कार है।

कुम्भ स्नान की यात्रा का गंतव्य भारत के विराट स्वरूप का दर्शन है, उसमें एकाकार हो जाना है। यह स्नान भारतवासी को भारत एवं मनुष्य देहधारी को मानव बनाती है। वे सभ्यता से एकरूप होकर अपनी पूर्णता को प्राप्त करते हैं। वे जल से उठते हैं तो दिग्भ्रम और क्षोभ से मुक्त होकर शुद्ध होते हैं; अस्तित्व की अमरता एवं सूक्ष्मता से सिक्त हो पुनर्नवा होते है।

भारत क्या है? यह सनातन की अनश्वर काया है।

यह त्रासद है कि इस विराट संस्कारोत्सव को सूक्ष्मता से अनुभूत किए जाने और सृष्टि के मूल के दृश्य रूप को आधार बनाकर व्यष्टि और समष्टि के आध्यात्मिक और सामाजिक उत्थान हेतु सार्थक विमर्श के स्थान पर क्षुद्रता ही चर्चा में आ रही है। यह और कुछ नहीं, कुशिक्षा और कुसंस्कार की व्याप्ति का द्योतक है। हमें अपनी अनन्य परंपराओं के प्रति गंभीर होने की आवश्यकता है।

नीरज कुमार झा

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