यह तथ्य यहाँ ध्यातव्य है कि समझदारी सामाजिक स्थिति सापेक्ष है, लेकिन आधुनिक परिवेश में जहाँ व्यापक घटनाओं और घटनाक्रमों, वैश्विक परिघटनाओं सहित, का प्रभाव किसी के भी जीवन पर तत्क्षण और गंभीर रूप से पड़ता है और, दूसरी तरफ, जहाँ नागरिकों के रूप में प्रत्येक का नगण्य ही सही लेकिन कुछ प्रभाव है, इन घटनाओं और परिघटनाओं की मुखर समझ सभी से वांछनीय है।
यहाँ यह भी रेखांकित करना आवश्यक है कि अपने को पूरे तौर से समझदार समझना निस्संदेह भ्रम है। समझदारी समझ की कमियों को निरंतर दूर करना और बढ़ाना है। सर्वमंगल की कामना से इस तरह की बातें करना भी समझदारी के दायरे में आता है।
नीरज कुमार झा
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