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मंगलवार, 17 जून 2025

धर्मो रक्षति रक्षितः

व्यक्ति के अधर्म का दुष्परिणाम उसके स्वयं के लिए तो होता ही है; उस परिवेश का भी होता है, जिसमें वह जीवनयापन करता है। दूषित परिवेश के दुष्परिणाम का वह स्वयं भी भागीदार होता है और उसके सगे-संबंधी भी। एक व्यक्ति का धर्मपालन सभी के हित में है और किसी का अधर्म सभी का अहित है। 

जीवन का ध्येय धर्म है और इसकी सफलता धर्मपालन की प्रवृत्ति और सामर्थ्य है।

धर्म अज्ञेय और ज्ञेय का पारिस्थितिकी की मर्यादा के साथ व्यक्ति की पूर्णता और सामुदायिक सावयवता हेतु समन्वय जनित बोध और तदनुरूप आचरण है।

नीरज कुमार झा

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