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गुरुवार, 10 मार्च 2022

भारत का प्रण

सभ्य जीवन का किया था सूत्रपात उसने 
जिसने किया था सूर्य की किरणों से  प्रथम विनय  
कि करें बुद्धि प्रकाशमय 
सभ्यता को स्वरूप दे गया था वह व्यक्ति 
पंथप्रवर्तकों के आने से सदियों  पहले 
कहा था जिसने दीपक बने अपना व्यष्टि 
कल्पित का वास्तव  के दमन के क्रूरतम चरम पर 
एक संत कर गया था परम का मानवीयकरण 
गाया था गीत उसने मानव और जगत की गरिमा का 
उस दौर में भी जब तथाकथित सभ्यताओं ने  
जातीय लोलुपता और दंभ के विज्ञान से 
प्रलयों में झोंक दिया था जन-जन को 
कृशकाय एक लगा एकअभियान महान में  
जिसमें सम्मिलित सभी नर-नारी ने  
आग्रह था किया प्राणपण 
कि नहीं है सत्य और अहिंसा भिन्न 
सत्य की सभ्यता के संघर्ष की इस परंपरा का निर्वाह 
है यही भारत का प्रण 

नीरज कुमार झा 



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