Niraj Kumar Jha
सोमवार, 30 दिसंबर 2024
Restoring Education to Students
Niraj Kumar Jha
परख
लोगों का बोध
कल्पना ही है किसी की
जो करता है
लोगों की कल्पनाओं पर राज
लोग बताते हैं
मिट्टी, पानी और हवा का
अच्छा या बुरा होना
जिनकी वजह से वे हैं
अधिकतर नहीं परख पाते उन्हें
जो उनकी वजह से हैं
नीरज कुमार झा
रविवार, 29 दिसंबर 2024
Globalisation
This is a reversal from the earlier global concern and efforts to regulate international economic affairs. This was happening amidst globalisation. Now, there is open resistance to globalisation everywhere. Nations have moved to homeland economics and strategic economic manoeuvres.
बुधवार, 25 दिसंबर 2024
The Path to Progress
This is why some civilizations surge ahead and prevail over others; some lag and get dictated by others.
A nation, the prime agency of human beings in the present age, must invest in and unobstruct the free play of ideas. Otherwise, intended progress hardly happens and if it does, it soon loses its steam.
Niraj Kumar Jha
मंगलवार, 3 दिसंबर 2024
दर्शन नहीं रहे रहस्यों की भूल भुलैया
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्
नीरज कुमार झा
सोमवार, 2 दिसंबर 2024
दर्शन की परख
मैं प्रस्तुत बीजलेख में दर्शन को इस तरह परिभाषित करता हूँ : दर्शन होने के अर्थ और उद्देश्य को नियत करने हेतु व्यवस्थित विचार है।
दर्शन का प्रभाव सकारात्मकअथवा नकारात्मक हो सकता है, या इसका कोई प्रभाव नहीं हो सकता है। यह बीजलेख निष्प्रभावी दर्शन को लेकर नहीं है।दर्शन की प्रकृति जानने हेतु परीक्षण की यह युक्ति अपनायी जा सकती है: यह देखा जाए कि इसकी उत्पति भयजनित है अथवा संभावनालक्षित। दूसरा, यह मानवों को साधन मानता है या साध्य। तीसरा, यह लक्ष्यानुरूप मानवजीवन के संगठन की योजना निरूपित करता है या मानवजीवन को आधारित कर लक्ष्य निर्धारित करता है।
विश्व इतिहास को दृष्टिगत करने पर प्रभावोत्पादकता को लेकर इस परीक्षण की उपादेयता स्पष्ट हो सकती है।
नीरज कुमार झा
रविवार, 1 दिसंबर 2024
दर्शन और समाज
किसी जनपद की भौतिक परिस्थितियों का प्रभाव वहाँ की विचारधारा पर हो सकता है लेकिन ये विचारधारा के निर्धारक नहीं होते हैं। ऐसे मानव होते हैं जिनकी बौद्धिक क्षमता और ऊर्जा उनके द्वारा लक्षित समुदाय की नियति बदल देती है और जिनका प्रभाव पूरी मानवता अथवा इसके बड़े हिस्से पर पड़ता है।
विचारधारा का प्रधान निर्धारक वास्तव में दर्शन है। इस संदर्भ में दर्शन के वैश्विक इतिहास के अध्ययन की आवश्यकता है, विशेषकर उनसे उत्पन्न प्रणालियों की और उनके प्रभावों और दुष्प्रभावों की।
प्रत्येक समाज को उत्कर्ष हेतु और अपकर्ष से रक्षार्थ दार्शनिकों की आवश्यकता होती है। आज कृत्रिम बुद्धि के दौर में सक्षम प्राकृतिक बुद्धि के पोषण की आवश्यकता और बढ़ गयी है।
दर्शन और दार्शनिकों का पोषण अपने-आप में पर्याप्त नहीं है। समाज को निःशंक दार्शनिकों से कठिन प्रश्न करने चाहिए। यह दार्शनिकों और समाज के हित में है कि लोग अपने अनुभवों के आधार पर दार्शनिकता का गहन परीक्षण करें। उनसे मांग करें कि वे ऐसी बातें भी करें जो व्यावहारिक और बोधगम्य हों ।
नीरज कुमार झा
शनिवार, 30 नवंबर 2024
जनतांत्रिक सभ्यता
वैश्विक स्तर पर जनतंत्र का उदय और प्रसार, जिसका भारत भी हिस्सा है, का संबंध हालाँकि आधुनिकता के विकास से है, जिसकी उत्पति पाश्चात्य सभ्यता में हुई। लेकिन, जनतंत्र यूरोप में वहाँ की सभ्यता के मूल्यों और लोकाचरण के प्रतिवाद के रूप में विजयी हुआ था और यूरोपीय परंपरा का वाद उस कारण से सीमित हो गया। ऊपर से, यह दीर्घकालिक, या कहें तो, युगीन हिंसात्मक संघर्षों के बाद ही संभव हुआ।
आज भी जब विश्व में जनतंत्र की व्याप्ति सीमित ही है, भारत में जनतंत्र की स्वीकार्यता लगभग स्वाभाविक रही। इस संदर्भ में इस बीजलेख का उद्देश्य यह रेखांकित करना है कि जनतंत्र किसी भी कालखंड की स्थिति नहीं, बल्कि उसकी उपलब्धि है। जनतंत्र हर पीढ़ी से सचेतन प्रयासों की मांग करता है। हमें अपनी इस सभ्यता के प्रसाद को निरंतर परिष्कृत करना है। दूसरा जुड़ा अहम लक्ष्य विश्व और विश्व व्यवस्था को जनतांत्रिक बनाना है। सर्वजन को जनतंत्र की गरिमा से युक्त करना भारत का ही दायित्व हो सकता है।
नीरज कुमार झा
गुरुवार, 28 नवंबर 2024
'Secular' State
Niraj Kumar Jha
रविवार, 24 नवंबर 2024
Intellectualism
Intellectualism involves exercising the intellect to think and discuss issues based on reason rather than emotion. I add that even popular or prevalent notions should not weigh on it.
I treat intellectualism as a social ethos here; a general spirit imbuing public discourses and activities. In addition, it must be oriented to realise and discover the reality's connectedness; i.e. to a systemic vision.
Intellectualism is a critical factor that determines the goodness of the social state and its betterment. A nation's ability to hold its fair position and negotiate with the world on favourable terms primarily depends on its intellectual strength.
The quality and effectiveness of intellectualism in a community require an elaborate and intricate mechanism. Maintaining and updating this critical subsystem of the political system is a conscious intellectual exercise with mindful and ample investments. Imitated or imported intellectual schemas may lead to a surge but not sustain any programme. Only rooted intellectualism serves its purpose.
The very consciousness of the same is a critical necessity.
Niraj Kumar Jha
शनिवार, 23 नवंबर 2024
Freedom or Dharma
This definition, though, comes from liberal philosophizing but betrays its collectivist underpinnings. Why would some provide those conditions to others and how? The answer to this question raises many concerns, which emerge from universal practices.
The best way to achieve those conditions would be a cooperative affair, but the law of oligarchy is unavoidable there, too. And, everybody doing everything would be too taxing for everyone.
In fact, freedom is an ecosystem of morality. It is about the voluntary ownership of responsibilities. Discoursing and doing good is both a means and end of freedom. But it is not freedom as it is understood and pursued. As it functions, it only begets either aloofness or loneliness. It is about claims made on a mechanism ultimately depending upon the same human beings who hinder each other's pursuits of their best.
Dharma is the answer: you are the One who owns and owes. You are the being, and you are the becoming.
Niraj Kumar Jha
बुधवार, 20 नवंबर 2024
वस्तुनिष्ठता की चुनौती
इस फांस का काट सामाजिक समस्याओं और चुनौतियों का संवेदनात्मक चिह्नांकन और उसके निराकरण की मानवीय योजना है। इतिहास विषय को इस संदर्भ में दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम, प्रकार्यात्मक इतिहास और द्वितीय, कौतुक इतिहास। पहला इतिहास वह है जो समकालीन समाज के लिए उपयोगी है और दूसरा जो मात्र कौतूहल शांति के लिए उपयोगी है। पहला इतिहास वर्तमान से विगत की ओर जाएगा और दूसरा अपने समय में ही देखा जाएगा।
नीरज कुमार झा
रविवार, 17 नवंबर 2024
ज्ञान
यह भी सत्य है कि परमार्थ स्वार्थ से अभिन्न है। सर्वहित में ही स्वहित की सर्वोत्तम उपलब्धि सम्भव है।
व्यावहारिकता मध्यममार्ग है। सबके भले के साथ अपनी भलाई का उपक्रम उचित है। इसकी सीमा है किसी को हानि पहुँचाए लाभ हेतु प्रयास। इससे निम्न कर्म समाज के विरूद्ध है और किसी के हित में नहीं है।
नीरज कुमार झा
बुधवार, 13 नवंबर 2024
The Myth of Naive Commoners
This is not to say that the common imagination is right or wrong. It may also be grossly mistaken, but for historical and sociological reasons, which one cannot help with. This is the first error on the part of general intellectualism as they can not discern that.
Another but bigger challenge is that people may not imagine and ideate functionally, the way that helps people towards the common good. That is due to the unavailability of a functional, not dysfunctional or malfunctioning, template for people to imagine properly. That is a failure of intellectualism, which the professional intellectuals fail to see.
Niraj Kumar Jha
सोमवार, 11 नवंबर 2024
संदर्भ व्हाट्सप्प हिस्ट्री बनाम ऐकडेमिक हिस्ट्री पर बहस : दोनों पक्षों से परे कि इतिहासकार आम लोगों से मुखातिब हैं या नहीं
इस बात को ध्यान रखने पर सुधी जन का रोष कम होगा और साधारण लोगों की बुद्धि को शायद कम कोसेंगे। यदि मेरी बात गलत है तो वे सुधीजन मेरा सुध लेते हुए मुझे शिक्षित करेंगे। कृपया।
नीरज कुमार झा
रविवार, 10 नवंबर 2024
Education and Ethics
This is a grossly mistaken perspective. Ethics is the sine qua non of education, not an addition. It is the core of education. Even imparting basic skills should not be without inculcating related values. Everything we do should be in service to others and one must do that honestly and with empathy. People are educated to be morally capable of doing things. At the same time, the claim of a fair reward for doing the service is equally moral.
मंगलवार, 5 नवंबर 2024
Moral Order
Good schooling with the best human beings available as teachers is now unavoidable if we do not want all hell to break loose.
Morality and the rule of law strengthen each other. Effective and fair laws are essential for morality's sustainability.
Besides these fundamentals, social reorientation is needed to integrate people into harmonious and pleasant community life. No person should feel alienated and being aloof should not be more pleasing than being with others. People, in general, should be conscious of this need for social remaking and think and do something in that direction.
Niraj Kumar Jha
शनिवार, 2 नवंबर 2024
Material Conditions and Human Agency
A widely prevalent misconception is that material realities condition human agency. This is true to some extent but in the most bland way. The cutting edge of human agencies is too often quite different and even opposite to what material conditions may dictate. Instincts and ideologies which drive human action more often than not defy the logic of the material.
Theologies and ideologies prove the point by their continuation through the ages and spread across geographies beyond their original ones.
The present-day world needs to cooperate unavoidably to tackle such grave issues like climate change and to run affairs of a more integrated world but it is conflicts, military and others, which overwhelm international relations. The world needs to rethink values which fashion human thinking and actions. Ideas are crucial and more effective agents of change. Let us ideate.
Niraj Kumar Jha
शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024
Civilizationalism
What is not talked about generally is Civilizanalism. The reality is that it is a more powerful sentiment than nationalism shaping global state and affairs. After Samuel Phillips Huntington's Clash of Civilizations warned about the nature of impending conflicts, concerned people around the globe rose in denial, but none did anything to prevent such a prospect. Unseen and unrealised, civilizations are racing in the direction as foreseen.
Niraj Kumar Jha
Agencies for Peace
गुरुवार, 24 अक्टूबर 2024
दर्शन और प्रदर्शन
इस संदर्भ में यह रेखांकित करने का प्रयास किया गया है कि सामान्य जन में प्रदर्शन के और उसमें निहित दर्शन को दृष्टिगत करने की क्षमता हो। प्रदर्शन के माध्यम से अनेक अमंगलकर विचार समाज के अभिकरण के चालक मूल्यों में प्रविष्ट करा दिए जाते हैं।
नीरज कुमार झा
मंगलवार, 22 अक्टूबर 2024
खरी बौद्धिकता
बहुतायत में बौद्धिक फुनगी का महिमामंडन करते है। जड़, तना, शाखाओं सहित वृक्ष के वृहत्तर यथार्थ की अवहेलना और अवमानना उनकी प्रकृति में है। यही आधिपत्य की दीर्घावधि जनित दासता की प्रवृत्ति है जो उन्हें सत्य को देखने से डराती रही है।
नीरज कुमार झा
सोमवार, 21 अक्टूबर 2024
पहचान की पहचान
सवाल यह भी है कि पहचान की पहचान क्या है
पहचान क्यों, किनके लिए, और किनसे
यह सवाल शायद ही उठा हो कभी
नीरज कुमार झा
Studying Abroad
Niraj Kumar Jha
शनिवार, 19 अक्टूबर 2024
सहारा बेसहारा
जो काम पर है, वह भी पीड़ित है
पानी है तो किनारा नहीं है
किनारा है तो पानी नहीं है
सहारा के लिए बनना सहारा है
यही सीखने-सीखाने की जरूरत है
नीरज कुमार झा
सत्य जीवन
शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2024
Truths
By and large, barring some very basic things, like this is a bat and that is a ball, truths are what we favour and lies are what we disfavour.
What are objective truths then? It is mutuality. It is the sense of respectability and responsibility towards others. It is something human agency endeavours to nurture in each. A crisis looms large when such endeavours do not materialise or insufficiently materialise.
Niraj Kumar Jha
गुरुवार, 17 अक्टूबर 2024
Means or End
Niraj Kumar Jha
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
Nationalism
Niraj Kumar Jha
शब्दों की खेती
देख प्रफुल्लित होते
बोधहीनता के कंटकों में उलझे लोग
नीरज कुमार झा
Industrialists
The capitalism they brought led democracy to grow and deepen its roots. In other colonies, where capitalism could not take root, democracy failed to emerge or survive.
Niraj Kumar Jha
शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024
निंदक
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय
आदर्श स्थिति यह है कि विज्ञों और सज्जनों के मध्य श्रेष्ठ सत्य के लिए सम्मानपूर्वक संवाद होता रहे, लेकिन निंदक की भी बौद्धिकता के लिए उपादेयता है। निंदा की प्रवृत्ति बौद्धिकता के अभाव और ईर्ष्या भाव से जनित होती है। निंदक विचारों में कमियाँ बताता है और तथ्यों की गलत व्याख्या करता है। प्रतिबद्ध विचारक उसको दृष्टिगत करते हुए अपने विचारों का परिष्कार करेगा और उसकी सही व्याख्या कर उसे और बोधगम्य बनाएगा।
नीरज कुमार झा
सोमवार, 7 अक्टूबर 2024
Towards Light
'तमसो मा ज्योतिर्गमय'
Concerned people always work for a clearer view. Darkness is the natural state, light is an endeavour.
Niraj Kumar Jha
रविवार, 6 अक्टूबर 2024
सम्मान
1. सम्मान मानवमात्र की गरिमा और समतावादी दृष्टिकोण जनित भावना और अभिवादन है।
2. प्रत्येक अन्य के प्रति सम्मान की भावना आत्मसम्मान का प्रकट रूप है।
3. आत्मसम्मान और अहंकार में अंतर है। दंभी दूसरे को नीचा दिखाना चाहता है और स्वयं को ऊँचा दिखाता है।
4. अधिकतर लोग सम्मान को लेकर सहज नहीं होते हैं। वे अन्य को अपने से नीचे अथवा ऊपर देख पाते हैं।
5. इसका कारण मानववाद की समूहवाद के विचारधारात्मक प्रतिरोध के कारण तदनुरूप अर्थव्यवस्था की असावयवी प्रकृति और जनवैचारिकी में अपर्याप्त मान्यता है।
6. सम्मान के दृष्टिकोण से शिक्षाशास्त्र की प्रकृति में संशोधन और अन्य के साथ संस्थाओं में पदस्थ सुधी जनों की संस्था के माध्यम से सक्रियता अभीष्ट है।
नीरज कुमार झा
शनिवार, 5 अक्टूबर 2024
भाषा चातुर्य और मर्मज्ञता
नीरज कुमार झा
शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024
सुनना
सुनना किसी भी स्थिति में बोलने वाले की सहायता करना है। दंभी लोगों को सुनना अत्यंत कष्टप्रद होता है। मुझे यहाँ साधु और बिच्छू की कहानी याद आती है। हालाँकि सिर्फ किसी व्यक्ति को सुनना, बनायी बातों को नहीं, अधिकतर सहज नहीं होता है। अतएव सुनना सेवा है।
नीरज कुमार झा
सुनना
बुधवार, 2 अक्टूबर 2024
बौद्धिक पारितंत्र
मंगलवार, 1 अक्टूबर 2024
कल्याण सूत्र
शनिवार, 28 सितंबर 2024
साहित्य और संपत्ति
रूग्णता का गीत नहीं गाया जाता।
संपत्ति से साहित्य भी सम्पन्न होगा। सम्पन्न व्यक्ति ही साहित्य पढ़ अथवा इसके प्रस्तुतीकरणों को देख सकता है। अधिकतर लोगों के द्वारा साहित्य पढ़ा जाए और खरीदा जाए तभी साहित्य की उपादेयता है और साहित्यकारों की प्रसंगिता भी। यह साहित्यकारों की प्रतिष्ठा भी बढ़ाएगी और बड़ी संख्या में रचनाकारों के लिए पर्याप्त आय वाली आजीविका भी बन सकेगी।
यह कैसी स्थिति है कि जिनपर लिखा जाता है वह पाठक नहीं है? जिस क्रांति की कोई संभावना नहीं है, उसका गीत गाया जाता है।
यह चलन जीवन और सृजन दोनों की वंचना का कारण है।
बड़ी समस्या यह है कि निदान नीरस होता है और समस्या सम्मोहक।
नीरज कुमार झा
मंगलवार, 24 सितंबर 2024
Good or Grand
We do not long for good, but for better. Better is possible only amidst the goodness of the ecosystem. In a bad social setup good cannot happen, grand does occur. Goodness is for more and more people, grandeur is for less and less.
For a normal blissful life, generally, one desires and even strives but that deludes people in most cases; what is required for that is one is socially concerned and endeavours to have a scientific worldview and so merited having some involvement in social affairs.Many people nurse the mistaken belief that the worst provides a turning point to a miraculous advance to good. They do not have any historical sense, a community and civilization may remain quagmired for centuries.
The takeaway is simple: you cannot be cavalier with public affairs. Seriousness and scientific temper are necessary if one wishes for a good life. Society has its laws, though highly fluid; that must be understood in terms of causations and consequences. Open mind and literary pursuits help and disciplines of Sociology, History, and Political Science provide special help.
Niraj Kumar Jha
Expressiveness of Meaninglessness
Niraj Kumar Jha
सच्चाई का मोल
नीरज कुमार झा
रविवार, 22 सितंबर 2024
बुद्धि
नीरज कुमार झा
बुधवार, 18 सितंबर 2024
जिंदगी की कहानी
आम जिंदगी की बस यही कहानी है
नीरज कुमार झा
काश!
सारी दुनिया को विचारों की पोटली में समेट कर
हवाओं पर सवार रहता
नहीं तो, कवि ही होता
रच शब्दों का चमत्कारी विन्यास
मुक्त स्वयं को कर लेता
कोई नहीं, लेकिन ऊपरवाला
ऊपर तो खाली रखता
दिल भरा, भारी तो नहीं रहता
मंगलवार, 17 सितंबर 2024
बाल सौंदर्यबोध
कैलंडरों, पोस्टरों, और पैकेजों पर,
खासकर पटाखों और बीड़ी के बंडलों पर,
औजार बक्सों पर,
और सबसे सुंदर,
गहरे पेंट से ट्रे पर
छपे चित्रों और दृश्यों को
मैं ध्यान से देखता था
और खो जाता उन चित्रों की दुनिया में।
बचपन की आँखों के सौंदर्यबोध;
वैसा सहज आनंददायक
इस दुनिया में कुछ भी और नहीं है।
The Worst Scarcity
The scarcity or absence of good workable ideas has been endemic at most times and places and is the reason for too many avoidable human miseries.
Way to Offset the Wealth-concentrative Tendency of Capitalism
Wealth concentration is a natural property of any active economic system. Capitalism is no different but offers a very effective way of offsetting the concentration of wealth. This may be community enterprises at the local level and cooperative capitalism on a larger scale. Many cooperatives are already doing very well in India. It needs to be extended to other complex entrepreneurial ventures.
सोमवार, 16 सितंबर 2024
Ideologies: Avoidable and Inevitable
The fact remains that ideology is unavoidable. Organisations need one, which works as the keel joining their principles and practices.
Wise people detest ideologies as they can see the play of ideologies fostering tyrannies and curbing individual freedoms.Ideologies can be classified as operationalising and reformative on one side and disruptive and reconstructive on the other.
The former is inevitable to the extent required for any organised effort and highly desirable if it works for piecemeal reforms.
It is the latter, which generates a general disdain among careful observers and is avoidable.
Niraj Kumar Jha
रविवार, 15 सितंबर 2024
UBI Again
UBI, i.e., the Universal Basic Income is seen as the solution to these crises; scholars in greater numbers now agree. And, there should be no doubt that it is now unavoidable. The late-starter nations would be laggards as a well-thought-out model of the same promises many advantages for a country.
There are two ways of providing UBI. The socialists prefer free or subsidised services and goodies to people, and the capitalist method is direct cash transfers.
The efficacy and effects of the latter are yet to be tested on a large scale but the former is a proven failure. It brings in only inefficiency and scarcity. The latter is the only way left but much would depend on how a county formulate and fine-tune the arrangement.
Niraj Kumar Jha
शनिवार, 14 सितंबर 2024
हिंदी का प्रचार-प्रसार
इसके लिए व्यवस्थित प्रयास और निवेश की आवश्यकता है। हिंदी भाषी क्षेत्र के नागरिक समाज संगठनों, विश्वविद्यालयों और सरकारों को इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए योजना बनाकर काम करना होगा।
इस योजना का यह एक आवश्यक भाग होगा कि हिंदी भाषी क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों में भारत की अन्य भाषाओं में अध्ययन, अध्यापन, और शोध किए जाने की सुविधा हो।
दूसरा कि राष्ट्रीय स्तर पर विश्व की सभी भाषाओं के अध्ययन और शोध हेतु संस्थानात्मक उपक्रम और अधिक संख्या में स्थापित किए जाएँ।
नीरज कुमार झा
मंगलवार, 10 सितंबर 2024
Speaking with Books
If your conversation with books becomes part of your conversations with people, it justifies the pains undertaken by authors for writing the speaking books.
Niraj Kumar Jha
Humanism: a Neglected Chapter
Deglobalization
What explains the reversal? It is the faculty's betrayal of agency. The entrenched interests ruling the roost internationally or aspiring ones conspired to thwart globalisation. The very pioneers of globalism backtracked seeing the rise of the others. Here, human epistemology could have enabled people to hold the gains and strive for more but it worked in the opposite direction due to its weaknesses. The likely beneficiaries were intellectually too impoverished to see the changes in circumstances in their favour. They rather only blamed these positive changes for their failures. The domestic elites were also hostile to the trend seeing its democratization potential.
Niraj Kumar Jha
सोमवार, 9 सितंबर 2024
स्वामित्व से सेवाभाव की ओर
अधिकार और दायित्व एक समग्र के ही आयाम हैं। प्रत्येक का अधिकार दूसरे का दायित्व है। यही नागरिक बोध प्रत्येक के लिए सहज और सफल जीवन सुनिश्चित कर सकता है।
जब जन जनतांत्रिक व्यवस्था में परिपक्व होंगे तो स्वामित्व भाव स्वयमेव तिरोहित हो जाएगा और बचेगा मात्र सेवाभाव। यह स्तिथि जनतंत्र के विकास का अगला चरण है और आज की चेतना के अनुसार जनतंत्र की यात्रा का गंतव्य भी। इस दिशा में यात्रा जन प्रज्ञता पर निर्भर करेगी।
नीरज कुमार झा
शुक्रवार, 6 सितंबर 2024
उपलब्धि
नीरज कुमार झा
सोमवार, 26 अगस्त 2024
मूर्खता नामक गुत्थी
मूर्ख कौन है? कैसे पता चले?
मेरी समझ यह है कि मूर्खता नाम की कोई चीज नहीं है। यह सम्मानपूर्ण परस्पर संवाद की प्रवृत्ति का अभाव है। जिनमें यह प्रवृत्ति नहीं है, विद्वान होने के बावजूद उनकी मानसिकता दोषपूर्ण है।
नीरज कुमार झा
Safety
The rest of the legitimate jobs the government performs are derivatives of this raison d'etre role of the government. And, beyond whatever the government does is undue interference in the social and personal affairs.
We ask for other things and put our lives in peril because of leftist indoctrination, or brainwashing.
Niraj Kumar Jha
शनिवार, 24 अगस्त 2024
Humanism Deficit
Niraj Kumar Jha
महानता
यह तथ्य है कि सभी विशिष्ट हैं लेकिन यह भी तथ्य है कि यह विशिष्टता नहीं है।
लोग विशिष्ट होने के उपरांत भी अपनी विशिष्टता के प्रदर्शन के लिए प्रयासरत रहते हैं और उस विशिष्टता के लिए मान्यता चाहते हैं। दूसरे शब्दों में, जयकारा की कामना रखते हैं।
वास्तव में यह दोषपूर्ण ज्ञानमीमांसा के द्वारा आरोपित अपूर्णता का बोध है। ऐसे अपूर्ण लोग अपनी अपूर्णता के अनुपात में दूसरों के लिए संकट बनते हैं।
नीरज कुमार झा
सोमवार, 19 अगस्त 2024
Citizenry and Economic Growth
A respected business leader has raised concern about the unchecked population growth and obliquely spoke in terms of praising the 'emergency' years, tragically. It must be widely known that it is poverty which causes disproportionate population growth and it is not vice versa. Population rise is a matter of concern only for the reason that it pressures ecology, and for no other reasons as they are highlighted. It is a big youth population at this period, the demographic dividend, which is making India an economic powerhouse.
Niraj Kumar Jha
शनिवार, 17 अगस्त 2024
God's Abode
You are His abode;
do not look for Him anywhere else.
Niraj Kumar Jha
बुधवार, 14 अगस्त 2024
The State of Democracy
What may be the reason for that?
Medieval forces, or forces emerging during the age of unreason and hordes, had, in fact, DNAed their barbaric reflexes into a great number of people. The DNA still determines the beliefs of a sizable portion of the global population. They are also using the same infrastructure.
A secondary reason is that Western countries have a dual approach to democratic values. They deploy the most heinous stratagems to undermine democratic possibilities elsewhere. They practice democracy within their race only. Challenging is now for them to prevent things from boomeranging.
Niraj Kumar Jha
शनिवार, 10 अगस्त 2024
Foreign Epistemologies
First World is about working knowledge first-hand. The First World generated knowledge by itself and used those systems to benefit. Second World worked on noxious trash generated in the First World, but, independently.
The Third World got knowledge systems from the first two Worlds and treated them as holy doctrines. These doctrines do not address their realities but they tried their best to concoct their realities to fit those doctrinal frameworks.
More tragically, when they try to indigenize their operating epistemology, they make their traditional doctrines mirror those foreign epistemologies they wish to replace.
Niraj Kumar Jha
शुक्रवार, 9 अगस्त 2024
FIRE to Hire
There are ways to tackle the crisis but here is one out of the box. It is FIRE: Financial Independence, Retire Early. FIRE is a global movement involving people trying to get financial independence sooner, so they can retire early.
They earn and save aggressively initially and after building a corpus they largely live on their saved money and assets. The movement is also catching up in India. If this movement crosses a threshold, it will create vacancies faster and financially independent retired people will boost the economy by continuously generating demand.
Lower taxes on earnings and savings, lower inflation, and general security may greatly strengthen the FIRE movement and naturally, there would be more jobs for younger people.
Niraj Kumar Jha
Devising Self-test
Niraj Kumar Jha
बुधवार, 7 अगस्त 2024
Human Dignity and Democracy
People often confuse democracy with its form and remain oblivious to its essence. A true democracy finds its operating procedures. Even actors, often highly acclaimed for their contributions to upholding and promoting democracy, and electors have limited roles.
It is the two intertwined values, rationalism and humanism, that generate the essence, i.e., the general respect for human dignity.
It is a historical process by which these values get embedded in the human mind and the race evolves into a democratic commonwealth.
Now the question comes what led to and sustains democracy in India? Primarily it is the Sanatana Dharma. The Dharma has a fair mix of concerns for noumenal and phenomenal. It cares both for the earthly and the heavenly. At times it prioritises the collective but mostly brings individuals to centre stage. Most importantly, it very unambiguously asks for reliance on self-intelligence. Unlike all religion cum philosophical enterprises, the Sanatana had high compatibility with modernism. Europe which happened to have birthed modernism had rejected its religion to embrace modernism. Let me remind here that humanism and rationalism are also the core values of modernism. It is modernism which evolved into democracy.
Modernism realises itself through systematic administration and free enterprise, i.e., bureaucracy and capitalism. Bureaucracy should not be confused with feudalism-fused pubis order of patronage. It is about managing both public and entrepreneurial affairs. Capitalism brings the spirit and substance of democracy into a society and bureaucracy makes it operational. The unavoidable features of the whole enterprise are efficiency, economy, and accountability.
What we can do to strengthen democracy, which remains a fragile order globally?
For this, we must recognise the merit of individualism and have faith in their faculty and agency. But we would be able to do this only by doing something else.
Here comes the role of education, to speak more precisely, of pedagogy. The nation must spend more on STEM. And secondly, we must let educational institutions evolve autonomously. The collegium of academics alone should have the responsibility of running an institution, preferably with self-funding.
Niraj Kumar Jha
शुक्रवार, 2 अगस्त 2024
Mobiles: A Perspective
Niraj Kumar Jha
बुधवार, 31 जुलाई 2024
Ignorance
Ignorance is not about speechlessness or inaction. Rather, it is about disproportionate verbosity, discourses, and activism.
Niraj Kumar JhaCrises: Moral or Intellectual?
Niraj Kumar Jha
वामपंथ के इतिहास से सीख
बुद्धिमत्ता इसी में है कि जीने को निष्कंटक और सहज बनाने के लिए प्रयास होते रहने चाहिए। इसीसे सकारात्मक परिवर्तन आता है। आमूलचूल बदलाव के द्वारा समस्याओं का पूर्णरूपेण निदान एक भुलावा है, जो ऐतिहासिक विवरणों से स्पष्ट है कि उनमें से कई भारी आपदाकारी रहे हैं। यह अलग तथ्य है कि इतिहासकार उन सभी घटनाक्रमों का महिमामंडन करते हैं। जो चल रहा है, उसमें कैसे सुधार हो? इसके लिए बिना किसी के जीवन में विघ्न डाले विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के माध्यम से ज्यादा प्रभावकारी परिवर्तन लाये जा सकते हैं।
नीरज कुमार झा
मंगलवार, 30 जुलाई 2024
आभासी आपण
रविवार, 28 जुलाई 2024
International Competitiveness
Niraj Kumar Jha
मंगलवार, 23 जुलाई 2024
सदेह कर्म
विश्वास हो जाता क्षीण
साधारण सा ही
अपना किया कुछ अच्छा
आ जाता है देने सहारा
आस्था कराती करम अच्छे
वे रहते सदेह हमेशा साथ
नीरज कुमार झा
रविवार, 21 जुलाई 2024
Changeism
Change is not a bad thing in itself. Change is inevitable and there is nothing permanent except the occurrence of changes. It happens on its own and the best changes are those, which remain imperceptible. We the present generation witness this. We are undergoing the most profound changes in human history, but we hardly talk about the times like people would have about their times undergoing dramatic events. People should work diligently, honestly and intelligently, all good changes occur without asking.
Niraj Kumar Jha
बुधवार, 17 जुलाई 2024
Constitutionalism
Niraj Kumar Jha
मंगलवार, 16 जुलाई 2024
Who is an idiot?
A superior in any setting castigates those people as idiots who do not comprehend their wishes and obey duly. Idiocy is not the intrinsic lack of quality, it is a relative disadvantageous positional vulnerability of getting humiliated. A person with a slavish mentality and machine-like efficiency is considered intelligent. A more humane and natural human person may be held as an idiot. In the general social milieu a person not at home in the mainstream ideology is seen as an idiot.
Are 'wise' people, who see others as idiots, wise? If you are not an idiot in the original sense, i.e. lacking in public interest, you know now that such people are not truly wise.
Niraj Kumar Jha
रविवार, 14 जुलाई 2024
अनादि से अनंत
लगी है भीड़ फिर भी
मार्गदर्शकों की
चलना ही है
पहुँचना नहीं है कहीं
अबूझ है
पथप्रदर्शकी
नीरज कुमार झा
History of Epistemology Or History of Knowledge
Niraj Kumar Jha
Talk of the Town
Niraj Kumar Jha
शनिवार, 13 जुलाई 2024
Jewels of the World
Niraj Kumar Jha
शुक्रवार, 12 जुलाई 2024
GK-ing Conversation
A coinage to identify people who try to impress people by dropping pieces of their GK in a conversation without showing any involvement in the theme of the conversation. They just kill a potentially good conversation with their arrogant attitude.
बुधवार, 10 जुलाई 2024
Paul and Peter
Now he works day and night
And he is the one who pays
Peter slept without a care
He never felt like applying his mind ever
He hardly works
And takes away what Paul pays
Niraj Kumar Jha
रविवार, 7 जुलाई 2024
सच से दूरी
बड़े से बड़ा झूठा भी सच की ताकत को जानता है
इसलिए वह कहता ज्यादा और सुनता बहुत कम है
सुनने से उसे अपने झूठ का घर ढह जाने का डर है
नीरज कुमार झा
Social Scholarship
Social trends are difficult to analyse and theorise as they involve human beings and numbering too many. As it is, scholars can freely designate their fancies as theories in this domain. In the larger social context, it is difficult to prove anything and it is more difficult to disprove that thing. In social scholarship, the credentials and craft of the scholar matter, not the worth of the statement.
Niraj Kumar JhaConcerning People in Gatherings
I envy them.
Niraj Kumar Jha
शुक्रवार, 5 जुलाई 2024
विचारशीलता
विगत के घोर संकटकालों में प्राचीन भारत की विचारशीलता की परंपरा ने ही भारत की रक्षा की। यह अवश्य हुआ कि आयातित और आरोपित विचारधाराओं का दुष्प्रभाव भारत पर पड़ा और आज भी है, लेकिन यह हमारी पीढ़ी के लिए सौभाग्य का विषय है, और मानवता के लिए भी, कि भारत संकट के अतीत को पीछे छोड़ चुका है और उसकी मेधा अनधीन हो चुकी है। अब तय है कि वह प्राचीन मेधा पुनर्नवा होकर मानवता का मार्ग प्रशस्त करेगी।
नीरज कुमार झा
रविवार, 30 जून 2024
Educatedness
I have devised here a test to know people who are educated.
शनिवार, 29 जून 2024
Preserving Talent
Niraj Kumar Jha
शुक्रवार, 28 जून 2024
Ease of Living
Though incomparable, the ease of living is rather more fundamental in nature. It is generally believed that people living through tough times are heroic ones, and they are bringers of good times. Truth is rather the opposite.
Bad times mostly lead to worse times and worse to the worst, and this is an endless spiral. If one studies history, one can see a declining phase lasts for centuries and often a rise is brought about by not the decaying stuff but by something new emerging mostly unrelated to the rot. And, it is only good that leads to better.
To live with ease is about optimising certainties and thus ensuring general stability. People certain of things spend more, donate more and care more for each other. Insecure people do just the opposite. Secure people can think clearly and find better mechanisms to meet the challenges. Such a scenario leads to peace and prosperity for optimum numbers. Even the worst off have adequate support as charities abound. The basic fact is that the ease of living is the raison d'etre of politics. Otherwise, it is chaos.
At the mundane level of governance, it means policy stability and predictability. Frequent changes in the rules of games and rude shocks are undoings of the policy of policy-making.
Niraj Kumar Jha
गुरुवार, 27 जून 2024
गहरी बातें
हताशाएँ छिपाने बातें गहरी करता हूँ
अनकहा जीवन
कह जाता कुछ और
अपने लिए भाषा ही नहीं बनी
भाषा उतनी ही है
जिससे चलती विचारधाराएँ
जीवनियाँ तो लिख जाती हैं
जीवन अनकहा रह जाता है
नीरज कुमार झा
सोमवार, 24 जून 2024
Publicising Personal
As I see it, the latent story is different. They are, in fact, celebrating their newly-gotten selfhood. Barely a generation ago, selfhood was an elitist possession only.
They should thank economic liberalisation, post-1991, for that.
Niraj Kumar Jha
Guinea-pigism
Strangely, human psychology is such that they fall for these ideologies and take it absolutely normal to be treated as guinea pigs.
Anything that matches the madness of ideological enterprises is the holification (sanctification) of the acts of predation.
Niraj Kumar Jha
सोमवार, 17 जून 2024
ज्ञान, बुद्धि, कौशल, और चतुराई
मेरे उक्त अभिव्यक्ति का उद्देश्य यह रेखांकित करना है कि व्यक्ति के व्यक्तित्व का आकलन संदर्भ के अनुसार ही होना चाहिए।
ज्ञानी व्यक्ति का बुद्धिमान नहीं होना एक व्यापक त्रासदी है। ऐसे व्यक्तियों के पास ज्ञान का विपुल भंडार होता है, लेकिन हो सकता है कि वह ज्ञान के ध्येय और प्रभाव से अनभिज्ञ हो। उसके द्वारा ज्ञान का सम्प्रेषण वास्तविकता से असंपृक्त अथवा लोकहित का प्रतिगामी हो सकता है।
ज्ञानी और मूर्ख में भेद कर पाना भी एक कठिन चुनौती है। लोग इसके लिए व्यक्ति को प्राप्त उपाधियों अथवा पद के आधार पर उसका मूल्यांकन करते हैं, जो प्रायः भ्रामक होता है।
ज्ञान का एक प्रबल पक्ष ज्ञानी व्यक्ति का सर्वहित की व्यवस्थागत विचारों से अवगत होने की स्थिति और उसके विस्तार करने की क्षमता है। मेरे विचार से ज्ञानी व्यक्ति की प्रकृति की विशिष्टता वैचारिक संवेदना है। यदि विद्वान कर्मणा भी सज्जन और जनहितैषी है, तो वही मेरे लिए महान है।
जनहितैषी विचारों में जन की प्रभुसत्ता रहे, विचारों की नहीं, यह भी जरूरी है। विचारों की आग पर लोगों का पकाया जाना ज्ञान और बुद्धि की विकृति है; और विडंबना यही है कि यही विद्वता का सर्वाधिक क्रियाशील स्वरूप है।
ज्ञान, बुद्धि, और कौशल, अथवा कौशल से युक्त होने मात्र से जीवन में सफलता मिले, यह तो लगभग एक संयोग ही है। इसके लिए एक अलग विशिष्टता की आवश्यकता पड़ती है, वह है चतुराई। यह बुद्धि का स्वहित में लक्ष्यबेधी संधान है। यह अन्य का स्रोतीकरण है। ऐसे जन स्वयं को स्वाभाविक रूप से साध्य और अन्य को साधन के रूप में प्रयोग करते हैं। उनके लिए ज्ञान भी स्वहित हेतु एक संसाधन मात्र है।
नीरज कुमार झा
शनिवार, 15 जून 2024
Anticolonialism and Postcolonialism
Anticolonialism was an ideological project and action plan for exposing colonial designs, legitimacy, and hegemony; and seeking national liberation from colonial rule.
Postcolonialism is a philosophical enterprise and programme for national reconstruction after the colonial devastation for redeeming dignity in people's living conditions and an egalitarian world order. Postcolonial theoreticians have uncovered the continued sway of colonial epistemology and institutions denying autonomy and agency to the decolonised world.
The postcolonialism programme is proving to be trickier. Earlier they relied on Bolshevism, but being a deceptive doctrine of liberation it failed all its adherents and even its homeland. Postcolonialism needs new consciousness and fresh imagination. We need the significance of self-educated people in numbers.
Niraj Kumar Jha
शुक्रवार, 14 जून 2024
Democracy and Capitalism
Just to prove the point, a capitalist may be least friendly to capitalism, as they may not like free market and competition. They may apply extra-market means to eliminate competition.
To clarify the title of the post: democracy and capitalism are the two sides of the same coin, that is liberalism.
Niraj Kumar Jha
मंगलवार, 11 जून 2024
समझ की समझ
रविवार, 9 जून 2024
वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में हमारी हिस्सेदारी
शनिवार, 8 जून 2024
Intellectuals
Marxism advocates activist intellectualism. They make a gross fallacy. The sway of teleologism and economic determinism over the intellectuals of this school is a telling example of intellectualism gone wrong. First, the doctrine asserts that social dynamics are determined by their scientific rules and contradicting the same, its successive ideologues kept on devising comprehensive plans and organisations for social action and resorted to propaganda to make what they perceived as scientific inevitability happen. In fact, they were trying to make up for a deficient doctrine.
The point here is that an intellectual has a greater role than just acting and reacting in response to events and has to rise above personal likes and dislikes. They need to delve deeper and find out causes and underlying currents to identify the true nature of social phenomena and to suggest means to improve societal practices and direct the social dynamics in a desirable direction.
A passionately activist intellectual mostly thinks unilinear and takes a predicament as a given, which they seek to fight with the force of sheer numbers or by making loud noises. They also turn partisan as a result of this proclivity and mainly play the role of cheerleaders or mourners as per the fate of their chosen outfit. They also do not serve their group as they can only charge their fellow activists emotionally and they do not point to the strengths and weaknesses of their programme or agenda or of those of their adversaries.
Intellectuals need to review their professional role with some seriousness.
Niraj Kumar Jha
गुरुवार, 6 जून 2024
Democracy in India
However, this is not to say that the Indic civilization underwent a sudden transformation to democracy on its strength alone. The process was seeded during the colonial rule itself and other factors came into play supporting and catalysing the makeover.
Two factors which supported the process were the rise of the middle class and later the growth of Indigenous industrial capitalism in the early twentieth century.
It is the combination of these two factors, which made India survive the collectivist experimentation for nearly four decades.
Now, India is in the process of recovery; though the intellectual scape is still to be cleaned of the collectivistic pathogens.
Let my country awake.
Niraj Kumar Jha
बुधवार, 5 जून 2024
राजनीति और व्यापार
हमें पाखंडियों के प्रभाव को नकारना होगा और जीवन के सबसे प्रभावशाली निर्धारकों के प्रति सकारात्मक दृष्टि अपनानी ही होगी। हमें समझना होगा कि व्यापार से उत्पन्न धन राजनीति को पोषित करता है और राजनीति का प्रधान कार्य व्यापार को निष्कंटक करना है।
नीरज कुमार झा
GDP Growth
Citizens must demand and strive to strike the GDP growth rate in double digits. A double-digit growth would imply doing away with all the ills in society, which bother us. Good quality education and affordable and advanced medical facilities for all are the basics for the economic takeoff and for the long haul, it must be sustainable environmentally too.
LPG, i.e., liberalization, privatization and globalisation we need to rethink for growth today. We must make our national ecology most favourable for entrepreneurship. Only when we have globally competitive Indian corporations, including arms industries, we can become a great power. We must expand globally to source raw materials and sell our products.
It is the national good on which depends the good of everyone. If the nation is powerful, everyone is secure; and if the nation prospers everyone will have a comfortable life. We have seen this happening and now we know how to make our future even better.
Niraj Kumar Jha
शनिवार, 1 जून 2024
जीवन का सार
रविवार, 26 मई 2024
ज्ञानदंभ
नीरज कुमार झा
गुरुवार, 23 मई 2024
Tonguing a Foreign Tounge
The vocal system of a person is attuned to their cultural production of sounds and not to others. Only through a very long and conscious practice, people train their tongue to pronounce the words of a foreign language. It is no less than torturing one's tongue.
We are also cultural beings. rather, with a longer history than most and as all cultural beings do, we can also twist the pronunciations, idioms and everything, which goes into making a language in spoken and written forms to our comfort. There is no problem as long as the other or a native speaker of a language can understand what we are trying to communicate, even if the listener has to make some extra effort. In fact, they should have corrected their language by making the spellings of words match their phonetic forms or vice versa. If they do not bother about the mismatch between how they write and speak, why should we?
We surf the internet and find many acceptable variants of any language and ways of pronouncing even proper nouns. Strangely, the very senior scholar does not know this.
Niraj Kumar Jha
बुधवार, 22 मई 2024
कोशिशें जारी रहीं
कि मेरा अपना वह बड़ा बन जाए
मेरे खुशी का ठिकाना नहीं रहा
मेरी कोशिशें और निवेश काम आये
कोशिशे बाद भी जारी ही रहीं
कि अपना वह अपना बना रहे
नीरज कुमार झा
पहचान
जो लोग प्रसिद्धि प्राप्त कर लेते हैं, उनकी त्रासदी और भी गंभीर है। प्रसिद्ध व्यक्ति पुराना व्यक्ति नहीं रहा जाता है। प्रसिद्धि की एक अलग दुनिया होती है जिसमें प्रवेश पाने वाला व्यक्ति एक नया व्यक्ति होता है और नये व्यक्तियों के साथ होता है।
आदमी का लक्ष्य उसका स्व और स्वयं की स्थिति होना चाहिए, लेकिन वह अपनी की बजाय एक सपने की दुनिया देखता है जिसमें उसके समेत सभी किरदार नए होते हैं, और वह उसे प्राप्त करने में लगा रहता है।
आदमी स्वयं रहकर और अपनी स्थिति में ही क्यों नहीं जीना चाहता है? उसे ही क्यों नहीं वह बेहतर बनाना चाहता है?
इसका कारण सामान्यतः लोगों के जीवन में अपमान और वंचना का अनुभव असह्य होना है। ऐसी स्थिति की व्याप्ति का इतिहास है।
हमें एक-दूसरे का सम्मान करना सीखना होगा। एक-दूसरे के काम आना होगा। एक-दूसरे की निजता स्वीकार और दूसरे की उपलब्धियों की सराहना करनी होगी। प्रत्येक व्यक्ति को यह भी ध्यान रखना होगा कि सफलता के अनुपात में उसकी विनम्रता भी बढ़े। उसे पता होना चाहिए कि आक्रामक सफलता पशुता का परिचायक है।
नीरज कुमार झा
रविवार, 19 मई 2024
आदमी हुक्म बजाता है
मुखौटा ही बोलता है
मुखौटा ही सोचता है
मुखौटा ही बताता है
आदमी हुक्म बजाता है
नीरज कुमार झा
शनिवार, 18 मई 2024
Beyond Ideological Fixation
Settled ideologies serve people to their comfort. Disturbing stability may not surpass the troubles it may cause in terms of the benefits it may reap. Therefore, the rational path is a piecemeal approach to social good. However, a piecemeal approach requires extraordinary philosophical minds in action. The challenge remains; how to get those extraordinary minds and bring them into action. What we can do is to make people realise that they see things through ideological lenses and reality may vary. And, an unjust order helps none. If this somehow gets into our operative epistemology, we may at least have the chance of having people more capable of seeing things as they are.
Niraj Kumar Jha
गुरुवार, 16 मई 2024
बुधवार, 15 मई 2024
Cooperativism
Cooperatives can be the most wonderful way to organise social life and ensure dignified livelihoods provided these are voluntary and mutual. Business cooperatives for any economic activity can immensely benefit all its members and compete well with even giant corporations. In particular, milk cooperatives and self-help groups in India have amply proved this. The way can be extended to social living by integrating individuals and families into caring communities. However, it would require setting norms for combining individual freedom and community responsibilities and a smooth procedure for joining and exiting a community.
Cooperatives fit perfectly in a capitalist order as the cooperatives may work as productive units of the economy while doing away with many probable ills of capitalist centralisation or even democratic centralisation.
Niraj Kumar Jha