रविवार, 26 मई 2024
ज्ञानदंभ
नीरज कुमार झा
गुरुवार, 23 मई 2024
Tonguing a Foreign Tounge
The vocal system of a person is attuned to their cultural production of sounds and not to others. Only through a very long and conscious practice, people train their tongue to pronounce the words of a foreign language. It is no less than torturing one's tongue.
We are also cultural beings. rather, with a longer history than most and as all cultural beings do, we can also twist the pronunciations, idioms and everything, which goes into making a language in spoken and written forms to our comfort. There is no problem as long as the other or a native speaker of a language can understand what we are trying to communicate, even if the listener has to make some extra effort. In fact, they should have corrected their language by making the spellings of words match their phonetic forms or vice versa. If they do not bother about the mismatch between how they write and speak, why should we?
We surf the internet and find many acceptable variants of any language and ways of pronouncing even proper nouns. Strangely, the very senior scholar does not know this.
Niraj Kumar Jha
बुधवार, 22 मई 2024
कोशिशें जारी रहीं
कि मेरा अपना वह बड़ा बन जाए
मेरे खुशी का ठिकाना नहीं रहा
मेरी कोशिशें और निवेश काम आये
कोशिशे बाद भी जारी ही रहीं
कि अपना वह अपना बना रहे
नीरज कुमार झा
पहचान
जो लोग प्रसिद्धि प्राप्त कर लेते हैं, उनकी त्रासदी और भी गंभीर है। प्रसिद्ध व्यक्ति पुराना व्यक्ति नहीं रहा जाता है। प्रसिद्धि की एक अलग दुनिया होती है जिसमें प्रवेश पाने वाला व्यक्ति एक नया व्यक्ति होता है और नये व्यक्तियों के साथ होता है।
आदमी का लक्ष्य उसका स्व और स्वयं की स्थिति होना चाहिए, लेकिन वह अपनी की बजाय एक सपने की दुनिया देखता है जिसमें उसके समेत सभी किरदार नए होते हैं, और वह उसे प्राप्त करने में लगा रहता है।
आदमी स्वयं रहकर और अपनी स्थिति में ही क्यों नहीं जीना चाहता है? उसे ही क्यों नहीं वह बेहतर बनाना चाहता है?
इसका कारण सामान्यतः लोगों के जीवन में अपमान और वंचना का अनुभव असह्य होना है। ऐसी स्थिति की व्याप्ति का इतिहास है।
हमें एक-दूसरे का सम्मान करना सीखना होगा। एक-दूसरे के काम आना होगा। एक-दूसरे की निजता स्वीकार और दूसरे की उपलब्धियों की सराहना करनी होगी। प्रत्येक व्यक्ति को यह भी ध्यान रखना होगा कि सफलता के अनुपात में उसकी विनम्रता भी बढ़े। उसे पता होना चाहिए कि आक्रामक सफलता पशुता का परिचायक है।
नीरज कुमार झा
रविवार, 19 मई 2024
आदमी हुक्म बजाता है
मुखौटा ही बोलता है
मुखौटा ही सोचता है
मुखौटा ही बताता है
आदमी हुक्म बजाता है
नीरज कुमार झा
शनिवार, 18 मई 2024
Beyond Ideological Fixation
Settled ideologies serve people to their comfort. Disturbing stability may not surpass the troubles it may cause in terms of the benefits it may reap. Therefore, the rational path is a piecemeal approach to social good. However, a piecemeal approach requires extraordinary philosophical minds in action. The challenge remains; how to get those extraordinary minds and bring them into action. What we can do is to make people realise that they see things through ideological lenses and reality may vary. And, an unjust order helps none. If this somehow gets into our operative epistemology, we may at least have the chance of having people more capable of seeing things as they are.
Niraj Kumar Jha
गुरुवार, 16 मई 2024
बुधवार, 15 मई 2024
Cooperativism
Cooperatives can be the most wonderful way to organise social life and ensure dignified livelihoods provided these are voluntary and mutual. Business cooperatives for any economic activity can immensely benefit all its members and compete well with even giant corporations. In particular, milk cooperatives and self-help groups in India have amply proved this. The way can be extended to social living by integrating individuals and families into caring communities. However, it would require setting norms for combining individual freedom and community responsibilities and a smooth procedure for joining and exiting a community.
Cooperatives fit perfectly in a capitalist order as the cooperatives may work as productive units of the economy while doing away with many probable ills of capitalist centralisation or even democratic centralisation.
Niraj Kumar Jha
रविवार, 12 मई 2024
बौद्धिक वृत्ति कौशल
कथाकारिता की सीमाएँ
कथारूप में जीवन का निरापद प्रतिनिधित्व लगभग असंभव है। अधिकतर कथाएँ (विशेषकर मनोरंजन उद्योग के द्वारा प्रयुक्त कथाओं की प्रकृति) एक विशेष व्यक्ति पर केंद्रित होती हैं, और अन्य सभी जन और परिस्थितियाँ उस चरित्र की केन्द्रीयता को पोषित करती हैं। समस्त को एक व्यक्ति के हेतु निमित्त के रूप में निरूपण जीवन की वास्तविकता का विरूपण है। यह कथाकार की आत्मकेंद्रीयता और अहमन्यता की प्रवृत्ति के प्रतिबिंबन के फलस्वरूप और लक्षित उपभोक्ताओं के समान भावनाओं की तुष्टि के लिए होता है। इसका दुष्परिणाम है; यह पाठकों और दर्शकों के दृष्टिकोण को संकुचित करता है। वह स्वयं को नायक में स्थित करते हुए कथा को ग्रहण करता है और अन्य को हेतु के रूप में देखता है। इस कारण से उसमें संवेदना और अन्य के प्रति सम्मान का भाव नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है और वह हमेशा कुंठाग्रस्त रह सकता है। एक सुधी व्यक्ति को कथाकारिता की सीमाओं की भिज्ञता रखनी चाहिए और उसे इससे अन्य को अवगत कराना चाहिए।
नीरज कुमार झा
शुक्रवार, 10 मई 2024
तुम देखना कवि
कहीं तुम्हारा अभिव्यक्ति का कौशल
जीवन पर हावी तो नहीं हो रहा है
कहीं अहं को तुमने तो नहीं बना रखा है दसवाँ रस
और सभी रसों में उसे ही घोल रहे हो
कवि, तुम याद रखना
मूक जीवन मुखर होने
तुम्हारी तरफ देख रहा है
जो द्रव बन सींच रहे जीवन को
उन्हें स्वर तुम्हें उसी विनम्रता से देना है
तुम साथ रहो, साझेदार बनो
मानवता पुकार रही है
तुम एक हो, लेकिन अनेक से अलग नहीं
तुम्हें ही यह समझना है, तुम्हें ऐसे ही रहना है
नीरज कुमार झा
बुधवार, 8 मई 2024
The Job of Teachers
सीखना
ज्ञानी होना कोई स्थिति नहीं है, यह ज्ञानार्जन की प्रवृत्ति है। यह सीखते रहने की निरन्तरता है। ज्ञानी होने का प्रधान पक्ष कुशल होना नहीं, जिज्ञासु होना है। कार्यकुशलता और विनम्रता ज्ञानवान होने के स्वाभाविक लक्षण हैं। वैसे सीखना किसी व्यक्ति के लिए प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन यह सीख परिस्थितियों से अवगत होना मात्र है। ज्ञान का संबंध परिस्थितियों की व्यापक समझ से है, जो परिस्थितियों के कारण-परिणामों के रूप में विभाजित करने और उसपर कार्य करते हुए समस्यामूलक स्थितियों का निवारण और सुधार को लेकर है। इस तरह का सीखना स्वाभाविक नहीं है, इसके लिए काफी प्रयत्न करना होता है। सीखने का कौशल प्राप्त करना प्रयास के क्रम में कभी एकाएक होता है या फिर कभी नहीं होता है।
नीरज कुमार झारविवार, 5 मई 2024
विकास बुद्धि
"उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।"
ऊपर मेरे द्वारा लिखी बातें मुझे अपनी शैक्षणिक प्रशिक्षण की पृष्ठभूमि में असाधारण लग रही है। आपको कैसी लगी। विमर्श का आवाहन।
शुक्रवार, 3 मई 2024
Individualism and Communitarianism
आँसू
ऐसा नहीं हो कि कोई अपने आँसुओं को रोक ले
किसी का बहे आँसू तो कोई पोंछने वाला न मिले
मुसकाना-हँसना लोगों का खिल जाना है
इन फूलों को सींचता आँखों का आँसू है
नीरज कुमार झा