ज्ञानी होना कोई स्थिति नहीं है, यह ज्ञानार्जन की प्रवृत्ति है। यह सीखते रहने की निरन्तरता है। ज्ञानी होने का प्रधान पक्ष कुशल होना नहीं, जिज्ञासु होना है। कार्यकुशलता और विनम्रता ज्ञानवान होने के स्वाभाविक लक्षण हैं। वैसे सीखना किसी व्यक्ति के लिए प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन यह सीख परिस्थितियों से अवगत होना मात्र है। ज्ञान का संबंध परिस्थितियों की व्यापक समझ से है, जो परिस्थितियों के कारण-परिणामों के रूप में विभाजित करने और उसपर कार्य करते हुए समस्यामूलक स्थितियों का निवारण और सुधार को लेकर है। इस तरह का सीखना स्वाभाविक नहीं है, इसके लिए काफी प्रयत्न करना होता है। सीखने का कौशल प्राप्त करना प्रयास के क्रम में कभी एकाएक होता है या फिर कभी नहीं होता है।
नीरज कुमार झा
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