नियति और नियंताओं का आभार कि बैंकिंग सेवा नागरीकरण की दिशा में अग्रसर है । उद्योग और वाणिज्य सरकार के कार्यक्षेत्र में नहीं आते हैं, यह सभ्य समाजों की स्थापित समझ है । अन्य के साथ बैंकिंग सेवा का सरकारीकरण बोलशेविक संक्रमण का परिणाम था, जिससे आज के भारत का जागरूक और गरिमायुक्त नागरिकसमाज मुक्त होने की स्थिति में है । इससे न मात्र उपभोक्ताओं का लाभ होगा बल्कि सेवियों के सम्मान और प्रतिदान में भी भारी बढ़ोतरी होगी ।
* सरकारी उद्योग-धंधों का नागरिक स्वामित्व में अंतरण की प्रक्रिया की संज्ञा के रूप में 'निजीकरण' शब्द का प्रयोग मेरी समझ से उचित नहीं है । प्रत्येक उद्यम लोक-उद्यम होता है, भले ही पारिभाषिक रूप से उसका स्वामित्व कुछ भी हो । मैं 'निजीकरण' के स्थान पर 'नागरीकरण' शब्द प्रयोग कर रहा हूँ, जो मुझे उपयुक्त लगता है, और मैं ऐसा प्रस्तावित भी करता हूँ ।
नीरज कुमार झा
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