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सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

सेना में शुचिता

नीरज कुमार झा 

     सेना देश की पहचान, सम्मान तथा सुरक्षा की अंतिम गारंटी है | सेना वह कवच है  जिसके अन्दर देश का अस्तित्व सुरक्षित रहता है | आज देश के सामने गंभीर खतरे  मंडरा रहे हैं | उत्तर में चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी ताक़त के रूप में शुमार हो चुका है | यह भारत के बड़े भूभाग पर काबिज़ है और अन्य हिस्सों पर बिलकुल नाजायज़ दावे कर रहा है | चीन के द्वारा भारतीय सीमा के अन्दर बराबर घुसपैठ तथा बाहर से लगातार पुख्ता की जा रही घेराबंदी भारत के लिये गंभीर संकट  है | पाकिस्तान ने तो सीधी लड़ाई में भारत को पराजित तथा छद्म युद्ध के द्वारा भारत को कमजोर करने को अपना राष्ट्रीय ध्येय  बनाया  हुआ है | भारत पश्चिम के इस्लामी कट्टरपंथियों के निशाने पर भी है |  दूसरी तरफ अमेरिका तथा उसके सहयोगी देश भी सापेक्षिक रूप से अपनी  घटती ताक़त और असर को बनाये रखने के लिये जद्दोजेहद को तेज करेंगे | इसका  खामियाजा भारत को भुगतना पड़ सकता है | भारत भी एक महत्वपूर्ण वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में स्थान बना चुका है | एक वैश्विक शक्ति के रूप में अपने वृहत्तर हितों की रक्षा के अतिरिक्त भारत को अनेक  वैश्विक दायित्वों को भी निभाना पड़ेगा | ऐसे में भारत की प्राथमिकता स्वयं को प्रथम श्रेणी की अत्याधुनिक सैन्य  शक्ति बनाने की होनी चाहिए |  इसके लिये यह भी जरूरी है कि भारत न मात्र हथियारों तथा उपकरणों के क्षेत्र में स्वावलमबी बने बल्कि  युद्धास्त्र के वैश्विक बाजार में विक्रेता के रूप में भागीदार बने | रक्षा मंत्री ए के एंटोनी ने भी इस तरह के विचार व्यक्त किया है और  इस दिशा में प्रयास भी  दिख रहे हैं  लेकिन उन प्रयासों में वह ऊर्जा नहीं है जो महाशक्ति की दावेदारी की  जरूरत के हिसाब से हो |  यूरोप के छोटे-छोटे देश वैश्विक आयुध बाजार में दबदबा रखते हैं तो भारत क्यों नहीं इस बाजार में प्रवेश पा सकता है ?  यह भारत के निजी उद्यम की  भागीदारी से संभव है | भारत के उद्योगपति  विश्व के बेहतरीन  उद्योगपतियों में हैं और वे सैन्य साजोसामान के उत्पादन में भी भारत को शीर्ष पर ले जा सकते हैं |  यह समय है कि सेना को लेकर देश में नवीन  चिंतन हो, दर्शन  पनपे तथा ऐसी प्रणालियाँ एवं व्यवस्थाएं निर्मित हों जिनसे सेना की कार्यप्रणाली, व्यापक रणनीति तथा वैश्विक सामरिक परिस्थितियों, खासकर विकसित हो रही प्रौद्योगीकियों के अनुरूप आवश्यक परिवर्तन की समय-समय पर समुचित पड़ताल हो सके | संकट के समय किसी कमी की  जानकारी का क्या लाभ? फ़िर भी अंत में पूर्ण सहमति के साथ रक्षा मंत्री के  इस वक्तव्य को दोहराना समीचीन है कि हमारे जवान और अफसर अपना जीवन, रक्त और स्वास्थ्य का अपनी जमीन के प्रत्येक इंच तथा सीमा की रक्षा में बलिदान कर रहे हैं| हम उन्हें सलाम करें और उनके सम्मान को अक्षुण रखा जाये|

नीरज कुमार झा, "सेना में शुचिता," बी पी एन टुडे, २/६, मार्च २०१०, पृ. २३/२२-२३.