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रविवार, 3 अप्रैल 2011

बिहार मंथन

बदलता बिहार : पुल पुराना और नया 
जिस देश का नाम भारत है उसके उद्भव, विकास और उसकी अवधारणा को स्वरूप देने में, जो क्षेत्र आज बिहार की सीमा में आता है का अहम् योगदान है. बिहार की राजनीतिक, सांस्कृतिक और यहाँ तक की आर्थिक विरासतें सिर्फ़ प्रांतीय या  राष्ट्रीय महत्व की नहीं वरन वैश्विक है. ज्ञान, विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में इसकी उपलब्धियों ने उस ऊँचाई  को छूआ जिसकी  समतुल्यता आज भी दुर्लभ है. दुर्भाग्य से आक्रान्ताओं के प्रकोप, सहस्त्राब्दियों की दासता, कुशासन और अराजकता ने इस प्रांत की सभ्यतामूलक स्वरूप को विछिन्न तथा सांस्कृतिक संवेदना को विकृत कर दिया. फिर भी बिहार में उस महान विरासतों के अवशेष वहाँ के अनेक व्यक्तियों के आचरणों में परिलक्षित होते रहे हैं. कुछ वर्षों पूर्व बिहार ने पराभव की पराकाष्ठा देखी और  वहाँ के वर्ग विशेषों की सामंती मानसिकता की विकृति बढ़ी तथा  एक अजीब सी लम्पटता बिहार के सामान्य जन-जीवन पर हावी हो गयी. सभ्य आचरण के सर्वोच्च मानदंड जो बिहार के लोकाचरण में जहाँ-तहाँ दृष्टिगोचर होते थे विलुप्तप्राय हो गये. अब  बिहार विकास के खोये वर्षों की क्षतिपूर्ति में लगा है और वहां एक नवीन जागरण स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है.

बिहार में जो कुछ हो रहा है उससे बिहार के लोगों  के साथ-साथ अन्य प्रान्तों के लोग भी प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं. ऐसे दौर में संतुष्टि जनित निष्क्रियता का प्रबल होना स्वाभाविक है जबकि इस समय सबसे ज्यादा जरूरी  विकास की दशा और दिशा को लेकर मूल्यांकन और चर्चा  की सततता की है. वर्तमान सरकार की सराहना जहाँ बिलकुल वाजिब है वहीं सुधि जनों को सरकार की  नीतियों और कार्यकरण में परिष्कार हेतु सदैव सजग रहना होगा.

इस बिंदु पर यह रेखांकित करना समीचीन है की बिहार में विकास की प्रभावी धारणा परम्परागत है. सुधार की नीतियों और उनके क्रियान्वयन में वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों के अनुरूप उनमें समसामयिकता परिलक्षित नहीं होती हैं. यह दौर वैश्वीकरण का है.  अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर घोर प्रतियोगिता के इस दौर में अस्तित्व और अस्मिता का प्रश्न समस्त राजनितिक इकाइयों के सम्मुख सबसे बड़ी चुनौती है. यह समय नित नवीन और परिष्कृत प्रौद्योगिकी के आगमन का भी है. ऐसे में विकास की कोई भी नीति वैश्विक मानदंडों के अनुसार हो, तभी प्रासंगिक है. बिहार को विकास के लिए भारत के परे विश्व स्तर पर प्रौद्योगिकियों, प्रक्रियाओं, संस्थाओं  और सभ्यता के सिद्धांतों और व्यवहारों का अध्ययन, विश्लेषण, आकलन कर परिष्कृत नीतियों और कार्यकरण के प्रतिमानों को गढ़ना होगा. नवीन प्रतिमानों का निर्माण आज के दौर में विश्व में हर जगह आवश्यक हो रहा है क्योंकि इस सदी में जिस तरह के अभूतपूर्व तकनीकी और व्यवस्थागत परिवर्तन सामने आये हैं उनकी कोई मिसाल नहीं है. बिहार की समस्या तो और भी विकट है. इसे गर्त से निकलकर सम्पन्नता और सभ्यता के स्वप्न को साकार करना है. 

- नीरज कुमार झा