वर्तमान वर्ष २०१० भारत के लिये इस घटना के लिये ऐतिहासिक रहेगा, प्रतीकात्मक रूप से ही सही, कि ४८ वर्षीय मुम्बई में जन्मे भारतीय उद्यमी संजीव मेहता ने ईस्ट इंडिया कंपनी को पुनर्जीवित करते हुए इसे फ़िर से बाजार में उतार दिया है. यह वही कंपनी है जिस सन १६०० के आख़िरी दिन ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ प्रथम ने शाही चार्टर के द्वारा पूरब से व्यापार करने का एकाधिकार सौंपा था. अब यह सोचना अविश्वसनीय लग सकता है कि यह एक ऐसी कंपनी थी जिसकी सशस्त्र सेनाएँ समुद्री बेड़े, मुद्रा, ध्वज और साम्राज्य थे.
सन २००० में इस कंपनी के स्थापना की ४०० वीं वर्षगाँठ थी और उस वर्ष इस कंपनी की ऐतिहासिक भूमिका को लोगों ने याद भी किया. सन २००० के कुछ ही समय बाद ही यह कंपनी संजीव मेहता की नज़रों में आई और २००५ में कंपनी और इतिहास ने नई करवट ली जब संजीव मेहता ने इस कंपनी को इसके ३० से ४० मालिकों (अधिकतर ब्रिटिश) से खरीदने की प्रक्रिया पूरी कर ली. यह मेहता के लिये और भारत के लिये एक विशेष अवसर था. मेहता अपने इस अहसास का बखान करने में असमर्थ थे कि वह कंपनी अकेले उनकी है जिसका कभी पूरा भारत था.
सन २००० में इस कंपनी के स्थापना की ४०० वीं वर्षगाँठ थी और उस वर्ष इस कंपनी की ऐतिहासिक भूमिका को लोगों ने याद भी किया. सन २००० के कुछ ही समय बाद ही यह कंपनी संजीव मेहता की नज़रों में आई और २००५ में कंपनी और इतिहास ने नई करवट ली जब संजीव मेहता ने इस कंपनी को इसके ३० से ४० मालिकों (अधिकतर ब्रिटिश) से खरीदने की प्रक्रिया पूरी कर ली. यह मेहता के लिये और भारत के लिये एक विशेष अवसर था. मेहता अपने इस अहसास का बखान करने में असमर्थ थे कि वह कंपनी अकेले उनकी है जिसका कभी पूरा भारत था.
आखिरकार इतिहास ने एक वृत्त पूरा कर लिया है. १६१५ में सर टामस रो जहांगीर के दरबार में हिंदुस्तान में व्यापार के फरमान के लिये चिरौरी कर रहे थे | वही कंपनी धीरे-धीरे समस्त भारत का हुक्मरान बन बैठी. आज लगभग चार सौ साल बाद उस कंपनी की अवर्णनीय विरासतों का एकमात्र वारिस एक हिन्दुस्तानी है. उसके पास वह 'कोट अव आर्म्स ' भी है जो एलिज़ाबेथ प्रथम ने कंपनी को दिया था. कंपनी बहादुर नाम जो कभी भारत में प्रभुता का प्रतीक था अब एक हिन्दुस्तानी बहादुर की निजी संपत्ति है. सन १९९१ में जब भारत में उदारीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई और विदेशी निवेश के लिये दरवाजे खोल दिये गये तो कई भारतीयों के मन में एक ही डर था कि विदेशी कंपनियों की वापसी कहीं फ़िर से गुलामी का बुलावा तो नहीं है? आज भारतवासी दुनियाँ के हर कोने में अपनी औद्योगिक, वाणिज्यिक और व्यावसायिक दक्षता और नेतृत्व की धाक जमा चुके हैं. भारतवासी इतिहास को पलट रहे हैं और पुरानी दास मानसिकता को पीछे छोड़ रहे हैं. ईस्ट इंडिया कंपनी का एक भारतीय के द्वारा खरीदा जाना भारतीयों के आत्म सम्मान और विश्वास को अवश्य पुष्ट करेगा.
- नीरज कुमार झा
- नीरज कुमार झा
[बी पी एन टुडे, वर्ष २ अंक ८, जून २०१० में प्रकाशित मेरे आलेख "भारतीय की हुई ईस्ट इंडिया कंपनी," (पृ. ३५-३६) का सारांश.]
चलिये कुछ तो अच्छा हुआ। अब यह कम्पनी ब्रिटेन को जीते तो कोई बात बने। या कम से कम भारत में अंग्रेजियत के बचे हुए टापुओं को ही ध्वस्त करने का मार्ग प्रशस्त करे।
जवाब देंहटाएंजब ईस्ट इण्डिया कम्पनी की नींव रखी गयी थी तब भारत समृद्ध राष्ट्र था और इंग्लैण्ड सहित सम्पूर्ण यूरोप अविकसित देश थे। इसी कारण इस कम्पनी का नाम ईस्ट इण्डिया कम्पनी पड़ा क्योंकि भारत से व्यापार करना बहुत बड़ी बात थी। लेकिन आज संजीव मेहता ने इस कम्पनी को खरीदकर भारत के स्वाभिमान को बढाया है यह हम सबके लिए गर्व की बात है।
जवाब देंहटाएंचलिये कुछ तो अच्छा हुआ।कम से कम एक सन्देश तो मिला ही है...अंग्रेजों को....
जवाब देंहटाएंसंजीव महता जी बधाई के पात्र हैं धन्यवाद इस जानकारी के लिये।
जवाब देंहटाएंदुनिया में पहली बार ही किसी कंपनी में अपनी पेरेंट्स कंपनी को खरीदा था और ये भी भारतीय ही थी
जवाब देंहटाएंगुड अर्थ को भारतीय कंपनी आयशर ने खरीद लिया था
संजीव मेहता को बधाई!!
जवाब देंहटाएंसंजीव मेहता इस कंपनी के कार्य क्षेत्र में इन्फ्रा-स्ट्रकचर को चुने तो प्रतीकात्मक रूप से यह कंपनी भारत के पुन:विकास में लगे।
unbelievable
जवाब देंहटाएंfeeling proude
जवाब देंहटाएंमन गर्वित अनुभव कर रहा है.....
जवाब देंहटाएंyah bahut aachi baat hai
जवाब देंहटाएंवाह-वाह,बहुत बढिया-उम्दा पोस्ट के लिए साधुवाद
खोली नम्बर 36......!
Achchhi Jankari Ke Liye Dhanyabad.
जवाब देंहटाएंदुर्लभ जानकारी के लिए धन्यवाद्। अनुनाद सिंह
जवाब देंहटाएंजी की इच्छा का मैं भी समर्थन करता हूँ।
but inspite of it INDIAN CULTURE IS ALTOGETHER RUINED IN INDIA. THERE IS RIGHT OF PROPERTY IN OUR CONSTITUTION TO PERMIT RICHES TO ACCUMULATE ANY AMOUNT OF WEALTH DULY PROTECTED BY OUR POLICE BUT AAPARIGRAH IS OUR IDEAL THINKING. RIGHT OF WORK IS NOT PROVIDED IN OUR CONSTITUTION PHYSICAL WORK FOR PRODUCTIVE PURPOSE IS MISSING IN OUR LIVES THE SAME IS NOT PROVIDED ANY SPACE IN OUR EDUCATION CURRICULAM THOUGH PARISHRAMA AWE PUJAYATE IS OUR IDEAL THOUGHT. OUR GOVT SAYS WE ARE UNABLE TO PROVIDE EVEN RS 32 DAILY WAGES TO OUR CITIZENS THOUGH TRADITIONAL CHAKKI CAN PROVIDE EVEN RS 100 DAILY WAGES PROVIDED SUITABLE INFRASTRUCTURE AND MARKETING POLICY IS FORMULATED BY OUR GOVERNMENT IN NATIONAL INTEREST THERE ARE SUFFICIENT BUYERS PURCHASING AASHIRWAD MULTI GRAIN ATTA AT RS 35 PER KG. THE NATIONAL POLICY AND NATIONAL INTEREST IN FAVOR OF OUR MANPOWER AND MUSCULAR POWER IS DESIRED. IF THE GOVT OF INDIA IS LISTENING
जवाब देंहटाएंVERY NICE TOPIC DEAR KEEP GOING SUPERB
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