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रविवार, 17 जनवरी 2016

आदर्श का संकट

(आज सूर्यदिवस है और आज के लिए मैं पूर्णरूपेण अनधीन हूँ। जो दैनन्दिन का अनुभव नहीं हो तो वह उत्सव बन जाता है। निम्नलिखत उस उमंग की अभिव्यक्ति है। )

आदर्शवाद पवित्रता की भावना है। यह मनुष्यत्व है। यह मनुष्य में अन्तर्निहित देवत्व है लेकिन बिना प्रखर मेधा के न यह मात्र व्यर्थ है बल्कि घातक भी है। नीरक्षीर विवेक से रहित आदर्शवादिता शठों के साम्राज्य की आधारभूमि रही है। उच्चतर मूल्यों का आह्वान निष्ठावान व्यक्तियों को त्याग और बलिदान के लिए एकत्रित कर लेता है। यह स्थिति अकसर त्रासद सिद्ध होती है। इसका कारण है कि धूर्तों के धूर्त, महाधूर्त, आदर्श का आवरण ओढ़ने में प्रवीण होते हैं और सामान्य जन की निष्ठा का दुरुपयोग स्वयं का वर्चस्व स्थापित करने के लिए करते हैं। दूसरी तरफ, आदर्शवाद बिना वैज्ञानिक चेतना के अभीष्ट स्थिति को प्राप्त करने में अक्षम होता है और आसानी से असामान्य रूप से पथभ्रष्ट हो जाता है क्योंकि आदर्शबोध जनित क्रियाशीलता पर नैतिकता का अंकुश नहीं होता है। निष्ठा बिन प्रज्ञा मात्र  निरर्थक ही नहीं वरन अनिष्टकर भी है।

  • नीरज कुमार झा

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