बदलता बिहार : पुल पुराना और नया |
बिहार में जो कुछ हो रहा है उससे बिहार के लोगों के साथ-साथ अन्य प्रान्तों के लोग भी प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं. ऐसे दौर में संतुष्टि जनित निष्क्रियता का प्रबल होना स्वाभाविक है जबकि इस समय सबसे ज्यादा जरूरी विकास की दशा और दिशा को लेकर मूल्यांकन और चर्चा की सततता की है. वर्तमान सरकार की सराहना जहाँ बिलकुल वाजिब है वहीं सुधि जनों को सरकार की नीतियों और कार्यकरण में परिष्कार हेतु सदैव सजग रहना होगा.
इस बिंदु पर यह रेखांकित करना समीचीन है की बिहार में विकास की प्रभावी धारणा परम्परागत है. सुधार की नीतियों और उनके क्रियान्वयन में वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों के अनुरूप उनमें समसामयिकता परिलक्षित नहीं होती हैं. यह दौर वैश्वीकरण का है. अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर घोर प्रतियोगिता के इस दौर में अस्तित्व और अस्मिता का प्रश्न समस्त राजनितिक इकाइयों के सम्मुख सबसे बड़ी चुनौती है. यह समय नित नवीन और परिष्कृत प्रौद्योगिकी के आगमन का भी है. ऐसे में विकास की कोई भी नीति वैश्विक मानदंडों के अनुसार हो, तभी प्रासंगिक है. बिहार को विकास के लिए भारत के परे विश्व स्तर पर प्रौद्योगिकियों, प्रक्रियाओं, संस्थाओं और सभ्यता के सिद्धांतों और व्यवहारों का अध्ययन, विश्लेषण, आकलन कर परिष्कृत नीतियों और कार्यकरण के प्रतिमानों को गढ़ना होगा. नवीन प्रतिमानों का निर्माण आज के दौर में विश्व में हर जगह आवश्यक हो रहा है क्योंकि इस सदी में जिस तरह के अभूतपूर्व तकनीकी और व्यवस्थागत परिवर्तन सामने आये हैं उनकी कोई मिसाल नहीं है. बिहार की समस्या तो और भी विकट है. इसे गर्त से निकलकर सम्पन्नता और सभ्यता के स्वप्न को साकार करना है.
- नीरज कुमार झा
वैसे अब बिहार पटरी पर आता दिख रहा है। इस आलेख के क्रम में अगले आलेख की प्रतीक्षा रहेगी....
जवाब देंहटाएंbadhai Badhiya hai
जवाब देंहटाएंउत्तम आलेख | तेजस्वी जैसे भ्रष्ट परिवार का प्रभुत्व रहते बिहार निरंतर अवनति के गर्त में डुबता जा रहा है|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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