कर्ज है हमारे ऊपर
पुरानी पीढ़ियों का।
अधिकतर पीढ़ियों ने
दी है बेहतर दुनियाँ
आने वाली पीढ़ियों को।
गौर करें हम भी
अपनी विरासतों पर।
वैसे यह बात नहीं है
सिर्फ़ नैतिकता की;
है यह बात
स्वार्थ की भी।
अधिकतर लोग जोड़ते हैं
ज़मीन और ज़ायदाद
औलादों के लिये।
वे नहीं सोचते कि
आखिर वे रहेंगे कहाँ।
समाज में ही तो !
क्यों नहीं वे कोशिश करते
उसी शिद्दत से
छोड़ने को एक बेहतर समाज
अपने बच्चों के लिये?
- नीरज कुमार झा
अधिकतर लोग जोड़ते हैं
जवाब देंहटाएंज़मीन और ज़ायदाद
औलादों के लिये
वे नहीं सोचते कि
आखिर वे रहेंगे कहाँ
सामाज में ही तो
क्यों नहीं वे कोशिश करते
उसी शिद्दत से
छोड़ने को एक बेहतर समाज
अपने बच्चों के लिये
बहुत सुन्दर कविता है नीरज जी.
बहुत ही अच्छी कविता कहूंगा इसे..... वर्तमान में युवा पीढ़ी अपने बुजुर्गों को नकार रही है, उसे नहीं पता कि उनके बुजुर्गों ने उनके लिए विरासत में क्या छोड़ा है।
जवाब देंहटाएं@ अधिकतर लोग जोड़ते हैं
जवाब देंहटाएंज़मीन और ज़ायदाद
औलादों के लिये
वे नहीं सोचते कि
आखिर वे रहेंगे कहाँ
सामाज में ही तो
क्यों नहीं वे कोशिश करते
उसी शिद्दत से
छोड़ने को एक बेहतर समाज
अपने बच्चों के लिये
आपकी इस सोच को नमन। आज याद आ गया फिर से
"पूत सपूत तो क्यों धन संचय
पूत कपूत तो क्यों धन संचय"
यह रचना हमें नवचेतना प्रदान करती है और नकारात्मक सोच से दूर सकारात्मक सोच के क़रीब ले जाती है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
दुर्नामी लहरें, को याद करते हैं वर्ल्ड डिजास्टर रिडक्शन डे पर , मनोज कुमार, “मनोज” पर!
बहुत सार्थक सोच
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 12 -10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
सकारात्मक सोच का परिचायक है ये रचना और एक बेहद सुन्दर संदेश भी देती है।
जवाब देंहटाएंक्यों नहीं वे कोशिश करते
जवाब देंहटाएंउसी शिद्दत से
छोड़ने को एक बेहतर समाज
अपने बच्चों के लिये
सच कहा हम लोग जो लेखन का काम करते हैं और अपनी मानसिकता का गन्दा कचरा भी उडेलते हैं यहाँ वो भूल जाते हैं की आने वाली पीढ़ी के लिए क्या परोस रहे हैं और अपना कैसा वजूद उनके सामने रख रहे हैं.
बहुत अच्छा संदेश देती रचना...
जवाब देंहटाएंबधाई.
बहुत सुन्दर रचना एवं उम्दा सोच!
जवाब देंहटाएं"अधिकतर लोग जोड़ते हैं
जवाब देंहटाएंज़मीन और ज़ायदाद
औलादों के लिये
वे नहीं सोचते कि
आखिर वे रहेंगे कहाँ
सामाज में ही तो
क्यों नहीं वे कोशिश करते
उसी शिद्दत से
छोड़ने को एक बेहतर समाज
अपने बच्चों के लिये"
वाकई कितना कम आंकते है हमारे पूर्वजों को हम, जिन्होनें ने रची संकल्पना वसुधैव कुटुंबकम की और छोड़ गए हमारे लिए विरासतें मूल्यों व संस्कारों की, जड़ बन उतर गए धरती की गहराईयों में, कि हम बातें कर सके जी भर कर आसमानों से, पर कद्र गर न करेंगे उनके योगदान और बलिदानों की तो बच पायगी धरती क्या आने वाले पीढ़ियों के लिए..?!
काफ़ी विचारोत्तेजक और भावपूर्ण प्रस्तुति. आभार.
सादर
डोरोथी.