पृष्ठ

मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

क्यों ?

सच को क्यों देनी होती है
परीक्षा बार-बार
क्यों रहता है सच हमेशा
संदेह के घेरे में
क्यों सहना पड़ता है शरीफों को
तकाजा शराफत का बार-बार
ईमान क्यों गला रहा कोढ़ की तरह
ईमानदार के ही जिस्म को
पढ़े-लिखों के लिये क्यों बन गयी है
पढाई बोझ की तरह
हयादारों के लिए क्यों
हया बनी हैं बेड़ियाँ
यह कैसी हवा चली है उलटी
कि आदमीयत ही खड़ी है कटघरे में
आदमी के क़त्ल के आरोप में

- नीरज कुमार झा