उम्मीद की पतली डोर है
परखो इसे मत इतना कि
रेशा-रेशा इसका उधड़ जाए
तुम चिंता क्यों नहीं करते
दल-दल की जिसमें हो
तुम बुरी तरह फँसे
निष्क्रिय शरीर और
चोंचलेबाजी में तुम्हारी महारत
हैरत की बात है
ऐसा तो नहीं है कि
तुम्हारे खुले मुंह में
कोई कुछ डाल जाता है
और तुम उसी की टर्राने लगते हो
- नीरज कुमार झा
परखो इसे मत इतना कि
रेशा-रेशा इसका उधड़ जाए
तुम चिंता क्यों नहीं करते
दल-दल की जिसमें हो
तुम बुरी तरह फँसे
निष्क्रिय शरीर और
चोंचलेबाजी में तुम्हारी महारत
हैरत की बात है
ऐसा तो नहीं है कि
तुम्हारे खुले मुंह में
कोई कुछ डाल जाता है
और तुम उसी की टर्राने लगते हो
- नीरज कुमार झा