अधिकतर लोगों ने समझ लिया है
यदि हैं आदतन ईमानदार
यदि हैं आदतन ईमानदार
तो इस बात को प्रकट न होने दें
नहीं तो लोग समझेंगे ढोंगी
यदि हैं चरित्रवान
तो चर्चाओं में ऐसा न झलके
नहीं तो समझे जायेंगे पाखंडी
यदि हैं सज्जन
तो इसे प्रदर्शित न होने दें
नहीं तो लोग समझेंगे बेबस-कमज़ोर
सच बोलने से बचें
नहीं तो लोग करार देंगे
उपद्रवी या द्रोही
लोग जानते हैं कि
नैतिकता के मृत्यु-भोज पर
बोलने से खलल पड़ता है
भोजन के आनंद में
कान रखो बंद ताकि
नहीं सुनाई दे
मानवता की आर्त्तनाद
मूंदे रखों आँखें ताकि
नहीं दिखे लुटता समाज
रखो मुंह बंद
ताकि कहीं निकल जाए न आह
होगी जो
मृतप्राय सभ्यता की कराह
यही है बहुसंख्य संवेदी लोगों का हाल
- नीरज कुमार झा