यह तय है और सभी सुधीजन जानते हैं कि धर्म और रिलिजन सर्वथा अलग संवृत्तियाँ हैं। बिलकुल अलग। यहाँ तक कि इन दोनों में तुलना का कोई समान आधार भी नहीं है। मेरे एक छात्र ने दोनों के अंतर के विषय में बड़ा अच्छा उत्तर दिया। उसने बताया कि मानवों के रिलिजन कई हैं लेकिन धर्म सभी का एक है।
दूसरी तरफ, धर्म को मात्र जीवन शैली कहना वास्तव में कुछ भी नहीं कहना है।ऐसा कहना कुछ भी परिभाषित नहीं करता है। अब सवाल है कि हिन्दुइज़्म क्या है? क्या इसे धर्म से अलग कर देखा जा सकता है। यह एक विचारणीय प्रश्न है। मुझे लगता है कि हिन्दुइज़्म शब्दरचना और इसको परिभाषित करने का प्रयास धर्म के प्रतिगामियों की कुत्सित योजना का हिस्सा है। ऐसा करके वे सनातन धार्मिक परम्परा को रिलिजन के समान्तर खड़ा करना चाहते हैं। रिलिजन हमेशा से नियंत्रण के यन्त्र के रूप में प्रयुक्त हुआ है। रिलिजन व्यक्तियों के अंतःकरण को अधीन करने का उपक्रम है।
नीरज कुमार झा