आओ! हम वाद-विवाद करें !
मुझे पता है कि तुम हो अटल अपने मत पर,
मैं भी प्रतिबद्ध अपने दर्शन को लेकर।
तुम पूछोगे कि क्या लाभ फिर इस वाक्-युद्ध का ?
मैं कहता हूँ कि भले ही हम नहीं स्वीकारें,
लेकिन वाद-विवाद की आग में असल चमक उठता है,
और मिलावटी पर जाता है काला।
कालिमा किसी पक्ष के हिस्से में हो,
लेकिन असल का चमकना जरूरी है ।
हाँ, समस्या एक रह ही जाती है।
वाद-विवाद रह जाता है निष्प्रभावी,
यदि किसी की मानवता गिरवी पर हो।
नीरज कुमार झा
मुझे पता है कि तुम हो अटल अपने मत पर,
मैं भी प्रतिबद्ध अपने दर्शन को लेकर।
तुम पूछोगे कि क्या लाभ फिर इस वाक्-युद्ध का ?
मैं कहता हूँ कि भले ही हम नहीं स्वीकारें,
लेकिन वाद-विवाद की आग में असल चमक उठता है,
और मिलावटी पर जाता है काला।
कालिमा किसी पक्ष के हिस्से में हो,
लेकिन असल का चमकना जरूरी है ।
हाँ, समस्या एक रह ही जाती है।
वाद-विवाद रह जाता है निष्प्रभावी,
यदि किसी की मानवता गिरवी पर हो।
नीरज कुमार झा