हिन्दी के पुजारी हैं
विशेष पुरोहित हैं
वर्ष में निर्दिष्ट समय पर
जैसी जिसकी श्रद्धा हो
दिवस, सप्ताह या पखवाड़े भर की
देवी की पूजा रखते हैं
पुरोहित देवी का आह्वान करते हैं
देवी की महिमा में कथाएँ दुहराई जाती हैं
कविताओं की आरती होती है
चुटकुलों की बजती हैं घंटियाँ
भाषणों के शंख बजाए जाते हैं
देवी के नाम पर चढ़ाए जाते है चढ़ावे
एक-एक कर सारे अनुष्ठानों के बाद
देवी को स्वस्थान गच्छ कह विदा दी जाती है
पुरोहित दक्षिणा पाते हैं
दर्शकों को प्रसाद मिलता है
सभी प्रसन्न मन घर जाते हैं
देवी हिन्दी की जय हो
- नीरज कुमार झा