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रविवार, 12 सितंबर 2010

देवी हिन्दी की जय हो

हिन्दी देवी हैं 
हिन्दी के पुजारी हैं 
विशेष पुरोहित हैं
वर्ष में निर्दिष्ट समय पर 
जैसी जिसकी श्रद्धा हो 
दिवस, सप्ताह या पखवाड़े भर की 
देवी की पूजा रखते हैं 
पुरोहित देवी का आह्वान करते हैं 
देवी की महिमा में कथाएँ दुहराई जाती हैं
कविताओं की आरती होती है 
चुटकुलों की बजती हैं घंटियाँ 
भाषणों के शंख बजाए जाते हैं 
देवी के नाम पर चढ़ाए  जाते है चढ़ावे  
एक-एक कर सारे अनुष्ठानों के बाद 
देवी को स्वस्थान गच्छ कह विदा दी जाती है
पुरोहित दक्षिणा पाते हैं 
दर्शकों को प्रसाद मिलता है
सभी प्रसन्न मन घर जाते हैं
देवी हिन्दी की जय हो 

- नीरज कुमार झा 


3 टिप्‍पणियां:

  1. इंटरनेट पर भी हिंदी का अभूतपूर्व विकास हो रहा है। इंटरनेट पर हिंदी की कई वेबसाइटें हैं। हिंदी के कई अख़बार नेट पर उपलब्ध हैं। कई साहित्यिक पत्रिकाएं नेट पर पढ़ी जा सकती हैं। हिंदी में ब्लॉग लेखक आज अच्छी रचनाएं दे रहें हैं। भारत में इलेक्ट्रॉनिक जनसंचार माध्यमों का प्रयोग दिनोंदिन बढ़ रहा है। यह देश की संपर्क भाषा के रूप में हिंदी के विकास का स्पष्ट संकेत देता है।

    बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    शैशव, “मनोज” पर, आचार्य परशुराम राय की कविता पढिए!

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