वे लड़ रहे हमारी बेहतरी के लिए
हमारी गैरत के लिए
फिर भी हम हैं कि
हमें सारा दोष नज़र आता है उनमें ही
हमने खर्च कर दी सारी ऊर्जा
उनका दोष ढूढने में
खुद तो कभी कुछ किया नहीं
लेकिन सारा दिमाग लगा दिया
उनको गलत-सही बताने में
हमें नहीं दिखता दोष उनमें
जिनके कारण हम नहीं रहे दो कौड़ी के
और होते रहे बेइज्जत बात-बेबात के
असल यह है कि
हममें पनपी ही नहीं
भावना खुद्दारी की
कैसे हमें अच्छी लगे
बातें आत्म सम्मान की
या परस्पर मान की
- नीरज कुमार झा