"राजनीति में हिस्सा नहीं लेने का एक दंड अपने से निम्न व्यक्तियों द्वारा शासित होना है।" - प्लैटो
("One of the penalties for refusing to participate in politics is that you end up being governed by your inferiors." - Plato)
इन्टरनेट पर सर्फ करते हुए प्लैटो के इस उक्ति पर नजर पड़ी. भारत की त्रासदी के सबसे बड़े कारण को यह कथन एकबारगी साफ़ कर देता है. भारत में राजनीतिक अव्यवस्था का सबसे बड़ा कारण समाज के अस्तरीय या निम्नस्तरीय लोगों की राजनीति में सक्रियता तथा स्तरीयता की संभावना वाले लोगों की राजनीतिक उदासीनता है. तथाकथित स्तरीय लोगों को तथाकथित इसलिए कहा गया है कि बिना सार्वजनिक मामलों में रूचि और सहभागिता के किसी व्यक्ति को स्तरीय कहा जाना उचित नहीं है. राजनीति में रूचि का यह मतलब कदापि नहीं है कि हर व्यक्ति चुनावी राजनीति में हिस्सा ले बल्कि इसका मतलब यह अवश्य है कि कम से कम आदमी मतदान तो अवश्य करे और सोच-समझ कर करे. बिना सोचे-समझे मतदान करना मतदान नहीं करने से भी बुरा है. हमें किसी दल को इसलिए ही वोट नहीं डालना चाहिए कि हम फलानी पार्टी के खानदानी समर्थक हैं, फलानी पार्टी हमारी जाति के लोगों की है, उम्मीदवार हमारी जाति या जमात का है. भारतीय मतदाता जज्बाती भी है. सामूहिक जज्बात की लहर से देश में कई बार राजनीतिक असंतुलन उत्पन्न हुआ है. हमें ऐसी किसी लहर से बचने की आवश्यकता है. इसके अलावा हर स्तर की राजनीति में रूचि रखना और नागरिक कर्तव्यों का निर्वहन जितना बन पड़े करना भी आवश्यक है. और हर स्तर की राजनीति, यहाँ तक की पारिवारिक मामलों को भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की राजनीति से और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की राजनीति को भी पारिवारिक मामलों से जोड़कर देखने की आवश्यकता है. प्रत्येक व्यक्ति की मानसिकता और क्रिया-कलाप से लेकर भूमंडलीय राजनीति तक के एक ही विशाल और जटिल विन्यास के आयाम हैं जहाँ कोशिकाएं शरीर का और शरीर कोशिकाओं का निर्माण करती हैं. हमारी हर गतिविधि और सोच का व्यापक प्रभाव है, इस सच पर विश्वास रखते हुए हमारा आचरण होना चाहिए.
यहाँ मध्यवर्ग की राजनीतिक भूमिका का उल्ल्लेख भी आवश्यक है. देश में मध्यवर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका है. आज जो देश तरक्की कर रहा है उसका जनाधार मध्यवर्ग ही है. भारत के पूंजीपति विश्व के धनकुबेरों में शुमार हो रहे हैं और भारत के राजनेताओं को वैश्विक स्तर पर सम्मान से देखा जाने लगा है. इन सभी का श्रेय मध्यवर्ग के मेधा, कौशल और श्रम को ही जाता है. मध्यवर्ग के परिश्रम के फलस्वरूप इस वर्ग का विस्तार हुआ है जिससे बड़ी संख्या में लोग गरीबी से निजात पा सके हैं. इन सब के बाद भी सरकार के द्वारा मध्यवर्ग के हितों की अनदेखी की जाती है. राजनीतिक वर्ग जानता है कि मध्यवर्ग राजनीतिक रूप से उदासीन नहीं तो निष्क्रिय जरूर है. इस कारण से मध्यवर्ग के हितों की वे निरंतर अवहेलना करते हैं. मध्यवर्ग की वृहत्तर राजनीतिक सक्रियता समय की माँग है. मध्यवर्ग की दूसरी समस्या राजनीतिक अभिमुखता की भी है. प्रायः उनकी राजनीतिक सोच पर वाममार्गी विचारधारा हावी है. इसका कारण लम्बे समय तक भारत की शिक्षा व्यवस्था में वामपंथी विचारधारा की विद्यमान प्रधानता है। सोवियतसंघ ने प्रचार तथा गुप्तचर गतिविधियों के द्वारा यहाँ की राजनीतिक सोच को अपने सांचे में ढाल लिया था। आज भी धुर दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़े लोग भी जब मुंह खोलते हैं तो सोवियत शब्दावली और विचारधारा ही मुखर होती है। मध्यवर्ग को अपनी राजनीतिक अभिमुखता पर गंभीरता से मंथन करना चाहिए।
मध्यवर्ग के लिए ही नहीं बल्कि प्रत्येक नागरिक के लिए अतएव जो सबसे जरूरी है वह राजनीतिक साहित्य का व्यापक अध्ययन है और राजनीति को लेकर, जितने लोगों और जिन लोगों से संभव हो, बहस करना है. इस तारतम्य में यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि हम राजनीतिक सक्रियता के प्रयास में किसी विचारधारा या नेता में अंधविश्वास या आस्था के चक्रव्यूह में न फँसे. ऐसी प्रवृत्ति घातक हो सकती है. हर व्यक्ति को अपने विवेक को सदैव सजग रखना चाहिए और बड़े से बड़े नेता, संगठन या विचारधारा को अपने विवेक की कसौटी पर सदैव परखते रहना चाहिए. हमें अपने व्यक्तित्व या मेधा को किसी भी हाल में कमतर नहीं आंकना चाहिए. हमें किसी के भी अनुयायी बनने की आवश्यकता नहीं है.
सच तो यही है कि हर व्यक्ति समष्टि की उतनी ही महत्वपूर्ण इकाई है जितना कि किसी व्यवस्था का सर्वोच्च पदाधिकारी. किसी भी व्यक्ति की महानता वास्तव में अन्य व्यक्तियों की अधमता के कारण जनित होती है. हमारी कमियाँ ही नायको को जन्मती है. एक दोषहीन समाज नायकों से भी हीन होगा. और अंत में बर्टोल्ट ब्रेख्ट का निम्नलिखित कथन सारी बातों के निचोड़ के रूप में -
"अभागा है देश जिसके नायक अनेक." (ब्लॉग लेखक द्वारा अनूदित)
"Unfortunate is the land which has many heroes." - Bertolt Brekht)
- नीरज कुमार झा
भारतीय राजनीती को आईना दिखता आपका यह आलेख.. सच है अच्छे लोगों की उदासीनता के चलते ही भारतीय राजनीती की यह दशा है... अभी भी अवसर है अच्छे लोग सक्रीय हो जायें तो भारतीय राजनीती की दशा और दिशा दोनों ठीक हो सकती है...
जवाब देंहटाएंसहमत आपकी बात से .. इस उदासीनता कों खत्म करना होगा आज युवा वर्ग कों ...
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