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रविवार, 23 अक्तूबर 2016

इंसान

इंसान को इंसान ही रह लेने दो
उसे जब मन हो हँस लेने दो
मन भरे उसका तो रो लेने दो
मत बनाओ किसी को त्यागमयी देवी
मत करो किसी की पीड़ा का महिमामंडन
मत किसी को बनाओं देव पाषाण
मत गाओ गीत किसी के पौरुष के
करने दो उसको कुछ बेवकूफियाँ
थोड़ा लड़ लेने दो, थोड़ा झगड़ लेने दो
थोड़ा पाप, थोड़ी बेईमानी, उसे कर लेने दो
थोड़ी कायरता, थोड़ी बेशर्मी, उसकी जाने दो
इंसान को इंसान ही रह लेने दो
हो सके तो ढहा दो गंभीरता के पहाड़ों को
बह लेने दो हल्की-हल्की हवाओं को

नीरज कुमार झा

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