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मंगलवार, 12 अक्टूबर 2021

Incomprehensible

I find it so. Why do common citizens feel sorry for the privatization of government-held companies? The recent case is Air India; I see many people crestfallen. Why so, notwithstanding the fact that the governmentalization of Air India was an act of usurpation, to begin with? As long as air transport was a government monopoly, only a minuscule minority could afford it. The overwhelming number of flyers today are first-generation flyers in India, and it happened only because of privatisation. Present-day aviation employs and serves a far greater number of people and generates considerable revenue for the government, instead of being a sink of public money.
Learn to respect your intellect and yourself.

Niraj Kumar Jha

रविवार, 10 अक्टूबर 2021

The Utopiated

A commoner is trained to think in a transcendental mode. He always basks under greatness; those of opportunities, heavens, utopia, and whatnot. He is perpetually about to board the bus, the elusive bus that never arrives. So opiated, he only messes up what he has, misses what he can have, and cannot think of what he should have.

Niraj Kumar Jha

रविवार, 3 अक्टूबर 2021

मेरी बातें

अपनी बातें कहना अपना जीवित और मनुष्य होने को सुनिश्चित करना है। यह जीवन और मनुष्यता का दायित्व भी है। मैं इसलिए अपनी बातें कहता हूँ और दूसरों की सुनता हूँ।

और, जब मैं अपनी बातें कहता हूँ तो निश्चित ही मैं चाहता हूँ कि वे वार्तालाप में बदलें। हालांकि मैं बातों के अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के प्रति निर्लिप्तता का भाव भी रखता हूँ और बातों को उन्हीं के भरोसे छोड़ देता हूँ।

इस संदर्भ में मैं अपनी अपेक्षाओं को भी व्यक्त करना चाहता हूँ और वैसा ही अभी कर रहा हूँ । मैं अपनी बातों से सहमति के बजाय असहमति को अधिक पसंद करता हूँ । दूसरा, मैं चाहता हूँ कि सहमति और असहमति दोनों ही तर्कपूर्ण और/अथवा अनुभवजन्य अभिव्यक्तियों के साथ हों। तीसरा, इस संदर्भ में मैं किसी के द्वारा सहमति के कारण को स्पष्ट किए जाने के प्रति अधिक जिज्ञासु रहता हूँ । सहमति का कारण जानना मेरे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है। वास्तव में मैं अकारण सहमति को उसी तरह की असहमति से भी बुरा मानता हूँ। अंतिम, मैं वैसे व्यक्तियों और सोशल मीडिया के संदर्भ में वैसे पोस्टों को बिल्कुल पसंद नहीं करता जो दूसरों के प्रति सम्मान के भाव से रहित हों अथवा अश्लील और भद्दे हों। इस बात का हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए कि सार्वजनिक मंच की, निजी सम्प्रेषण के माध्यमों से अलग, अपनी मर्यादा होती है ।

ऊपर लिखी मेरी अपेक्षाएँ आकांक्षारहित हैं। यह लिखने के बाद किसी के द्वारा गलती से भी किसी तरह के बोझ लिए जाने के लिए मैं उत्तरदायी नहीं हूँ। आप जैसे हैं, अच्छे  हैं। मेरी शुभकामनाएँ।

नीरज कुमार झा

प्रश्न और उत्तर

उत्तर प्रश्न का अंत है। स्वाभाविक है कि प्रश्न उत्तर से बचना चाहेंगे। दूसरी तरफ, उत्तरों का भी अहं है, वे प्रश्नों से स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखना चाहते हैं । आम जीवन की सहजता के लिए प्रश्नों का अपने बने रहने की हठधर्मिता और उत्तरों की निरपेक्षता की प्रवृत्ति को पहचाना जाना जरूरी है ।

नीरज कुमार झा