आवाजाही भी बहुत पुलों पर
शहर को बाँटते नदी-नाले
पता भी नहीं पड़ते
नदी-नाले पता तो नहीं पड़ते
लेकिन इस गुमनाम आवाजाही से
पता भी क्या पड़ता है
आते-जाते हैं लोग
पता उनका भी नहीं पड़ता
शहर है बड़ा
दरारें हैं चौड़ी
पर पता नहीं चलता
पुल पड़े हैं पाटों पर
जोड़ते नहीं किनारों को
बार-बार पार होते हैं लोग
लेकिन पार नहीं हो पाते लोग
पता उसका भी नहीं चलता
- नीरज कुमार झा
सही है...अजीब कशमकश है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंnice poem
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंsahi hai
जवाब देंहटाएंbade shahro ka yahi hal he
pata nahi chalta ab kaha he nadi kaha he nala
हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
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