दिन वह जल्दी आने वाला है
जब न होंगी सीमाएँ
और न होंगी सेनाएँ
टूटेंगी दीवारें मानवता के बीच
दरकिनार होंगे लोग वे
सधते हैं हित जिनके
मानवता के बटे होने से
नहीं होगा उद्योग सबसे बड़ा
हत्या और नरसंहार के औजारों का
रुकेंगे प्रशिक्षण हिंसा और ध्वंस के
दुनियाँ चल चुकी है उस ओर
संपर्क और आवाजाही
व्यवहार एवं व्यापार
तथा नई तकनीकों से
बढ़ती निकटता
ला रही घनिष्टता अपूर्व
मानवता के सरोकार और खतरे
भी हो रहें हैं एक
दकियानूसी पीछे छूट रही है
सोच नई पनप रही है
मानवता हो रही एक इकाई
खेमें रहेंगे तो भी नहीं खेले जाएंगे खूनी खेल
रहेंगी अस्मिताएँ भी अनेक
पर होंगी वे प्रतिबिम्ब मात्र
बहुरंगी संस्कृतियों के
लोग एक दूसरे को समझ रहे हैं
गुमराह करते विचार
नहीं हैं अब स्वीकार्य
वसुधैव कुटुम्बकम
अब भारत की भावना नहीं
दुनियाँ की सच्चाई बन रही है
धरती के प्राकृतिक रूकावटों को
हम कबके जीत चुके हैं
कृत्रिम बाधाएँ
हमें रोक नहीं सकती
अब ज़्यादा दिन
- नीरज कुमार झा
आधुनिकता के साथ साथ सांस्कृतिक परंपरा की झलक है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 20.06.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/