पृष्ठ

सोमवार, 5 जुलाई 2010

मायने खोती 'राजनीति'





  - नीरज कुमार झा 


महानगरों में 'गेटेड  कम्युनिटीज'  (फाटकबंद  बिरदारियाँ) का चलन बढ़ रहा है. उच्च मध्यवर्ग और मध्यवर्ग के लोग चारदीवारी के अंदर बनी कालोनियों  में रहते हैं जिनके गेट पर तैनात पहरेदार अनावश्यक लोगों को घुसने नहीं देते हैं और घुसने वालों की पूछ-ताछ और उनकी जानकारियों को रजिस्टर करते हैं. ये फाटकबंद बिरादरियाँ मध्य वर्ग की बढ़ती असुरक्षा और नागरिक मुद्दों से उनके अलगाव के परिणामस्वरूप बढ़ती ही जा रही है. यह चलन यह भी बताता है कि मध्यवर्ग को राजनीति से कोई उम्मीद नहीं रह गयी है और वह इस तरह के द्वीपों में वृहत्तर समाज से अलग होकर सुकून ढूढ़ता है. 'राजनीति' सरीखी फ़िल्में राजनीति को लेकर उनकी नकारात्मक धारणा को मजबूत करती है, उनके भय को बढ़ाती है और पलायनवादी प्रवृत्ति को पुष्ट करती है. फाटकबंद ये बिरादरियां भूल जाती हैं कि यदि वे राजनीति के प्रति ऐसे ही उदासीन बने रहे तो ये चारदीवारें और फाटक उनके किसी काम नहीं आयेंगे. ऐसा हो भी रहा है. इन बिरादरियों में ही अपराधी तत्व सक्रिय हैं और अपने कारनामों को अंजाम भी दे रहे हैं.  

(बी पी एन टुडे, वर्ष २ अंक १०, जुलाई २०१० में प्रकाशित मेरे आलेख "मायने खोती 'राजनीति' "  का एक अंश) 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें