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सोमवार, 12 सितंबर 2011

अभी भी दूर है सभ्यता हमसे

तय है 
भविष्य की पीढ़ियाँ
जब लिखेंगी इतिहास 
हमें रखेंगी बर्बरों की श्रेणी में
हमारी तथाकथित सभ्यता 
खर्चती है
सबसे ज़्यादा  संसाधन 
ध्वंस के उद्योगों पर
और हिंसा के प्रशिक्षण पर
मानवता की प्रगति बौनी है 
इसकी अदमित दानवता के आगे
हमारे पंथ और तंत्र के मूल में 
है अभी भी सिर्फ हिंसा
अभी भी उपेक्षित है
भारत का वसुधैव कुटुम्बकम का  सन्देश 
और अहिंसा का दर्शन 
हमारी सभ्यता अभी भी दूर है
सत्य, अहिंसा और अनुराग के
जीवन दर्शन और शैली से 
अभी भी दूर है सभ्यता
हमसे

- नीरज कुमार झा 






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