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रविवार, 8 जनवरी 2012

यह कौन है

मौन 
अतिघनीभूत मौन 
आत्मा को जड़ करता मौन 
वाचलता
खोखली वाचालता
मस्तिष्क को भन्नाती  वाचालता 
जम चुकी है चेतना
तन में घुसा है उन्माद 
लोग हैं पड़े सडकों के किनारे  
दुःख का अंत नहीं 
लेकिन भर नहीं रहा कोई आहें 
घोर पीड़ा में भी न कोई कराह रहा 
दिल भरा है  
लेकिन आँखे हैं बिलकुल सूखी 
देख रहे वे 
वाचालता के झंझावात में उड़ते
संवेदना के सूखे पत्ते
सड़को पर 
अट्टहास करते 
इठलाते मचलते लोग 
उन्मत्त नृत्य कर रहे हैं 
किनारे चीथड़ों में लिपटी 
सूनी आँखों को सड़क पर टिकाये 
यह कौन है

- नीरज कुमार झा 

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