मौन
अतिघनीभूत मौन
आत्मा को जड़ करता मौन
वाचलता
खोखली वाचालता
मस्तिष्क को भन्नाती वाचालता
जम चुकी है चेतना
तन में घुसा है उन्माद
लोग हैं पड़े सडकों के किनारे
दुःख का अंत नहीं
लेकिन भर नहीं रहा कोई आहें
घोर पीड़ा में भी न कोई कराह रहा
दिल भरा है
लेकिन आँखे हैं बिलकुल सूखी
लेकिन आँखे हैं बिलकुल सूखी
देख रहे वे
वाचालता के झंझावात में उड़ते
संवेदना के सूखे पत्ते
सड़को पर
अट्टहास करते
इठलाते मचलते लोग
उन्मत्त नृत्य कर रहे हैं
किनारे चीथड़ों में लिपटी
सूनी आँखों को सड़क पर टिकाये
यह कौन है
- नीरज कुमार झा
बहुत बढिया रचना है बधाई स्वीकरें।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बालीजी.
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