फूहड़पन को फूहड़ता से लेना
नहीं है बुद्धिमानी
नहीं रह गयी यह पहचान ओछेपन की
यही है अब मुख्यधारा
इसकी अवहेलना है घाटे का सौदा
विरोध इसका नहीं खतरे से खाली
मसखरे, मवाली और शातिर अपराधी
इन्हें इन नामों से अब नहीं जाना जाता
वे हैं अब कर्णधार
समाज के अभिभावक
सामूहिक मामलों के मालिक
फूहड़ता और उद्दंडता ही खरा है
यही है नियति अब
लोगों और समाज की
उपेक्षा
साहित्य की
संस्कृति की
कला की
उदासीनता
निःस्वार्थ सरोकारों के प्रति
अनधीनता के मानदण्डो के प्रति
समुचित शिक्षा के प्रसार के प्रति
बौद्धिकता के प्रति
अब भारी पड़ रही है
तैयार हो चुका है ऐसा बहुसंख्य
जो है
मानसिक रूप से विकृत
नैतिक रूप से भ्रष्ट
और बौद्धिक रूप से दिवालिया
यह समय है गंभीर संकट का
समाज की समस्त सकारात्मक ऊर्जा
लगे तब भी
समय लगेगा इस संकट को दूर करने में
- नीरज कुमार झा
नहीं है बुद्धिमानी
नहीं रह गयी यह पहचान ओछेपन की
यही है अब मुख्यधारा
इसकी अवहेलना है घाटे का सौदा
विरोध इसका नहीं खतरे से खाली
मसखरे, मवाली और शातिर अपराधी
इन्हें इन नामों से अब नहीं जाना जाता
वे हैं अब कर्णधार
समाज के अभिभावक
सामूहिक मामलों के मालिक
फूहड़ता और उद्दंडता ही खरा है
बाँकी के आचार और व्यवहार
नहीं चलते अब खोटे सिक्कों की तरह यही है नियति अब
लोगों और समाज की
उपेक्षा
साहित्य की
संस्कृति की
कला की
उदासीनता
निःस्वार्थ सरोकारों के प्रति
अनधीनता के मानदण्डो के प्रति
समुचित शिक्षा के प्रसार के प्रति
बौद्धिकता के प्रति
अब भारी पड़ रही है
तैयार हो चुका है ऐसा बहुसंख्य
जो है
मानसिक रूप से विकृत
नैतिक रूप से भ्रष्ट
और बौद्धिक रूप से दिवालिया
यह समय है गंभीर संकट का
समाज की समस्त सकारात्मक ऊर्जा
लगे तब भी
समय लगेगा इस संकट को दूर करने में
- नीरज कुमार झा
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