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रविवार, 17 मई 2015

जमीन पर खड़ा आदमी ही आदमी है आज

बड़े बनने की धुन में बड़प्पन खो रहे हैं लोग
बड़ा बनने के चक्कर में आदमी नहीं रह गए लोग
गंदगी की ढेर को ऊंचाई मान रहे  हैं लोग
विकृतियों की तुष्टि को उपलब्धि मान रहे लोग
जालसाजों की  संगत  से प्रफुल्लित हैं  लोग
अपमान हर किसी का करना मान मान रहे हैं लोग
कुत्सितता की कामयाबी के अहंकार से उन्मत्त हैं लोग
छोटा आदमी ही ज़्यादा आदमी है आज
जमीन पर खड़ा आदमी ही आदमी है आज

- नीरज कुमार झा 

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