बड़े बनने की धुन में बड़प्पन खो रहे हैं लोग
बड़ा बनने के चक्कर में आदमी नहीं रह गए लोग
गंदगी की ढेर को ऊंचाई मान रहे हैं लोग
विकृतियों की तुष्टि को उपलब्धि मान रहे लोग
जालसाजों की संगत से प्रफुल्लित हैं लोग
अपमान हर किसी का करना मान मान रहे हैं लोग
कुत्सितता की कामयाबी के अहंकार से उन्मत्त हैं लोग
छोटा आदमी ही ज़्यादा आदमी है आज
जमीन पर खड़ा आदमी ही आदमी है आज
- नीरज कुमार झा
बड़ा बनने के चक्कर में आदमी नहीं रह गए लोग
गंदगी की ढेर को ऊंचाई मान रहे हैं लोग
विकृतियों की तुष्टि को उपलब्धि मान रहे लोग
जालसाजों की संगत से प्रफुल्लित हैं लोग
अपमान हर किसी का करना मान मान रहे हैं लोग
कुत्सितता की कामयाबी के अहंकार से उन्मत्त हैं लोग
छोटा आदमी ही ज़्यादा आदमी है आज
जमीन पर खड़ा आदमी ही आदमी है आज
- नीरज कुमार झा
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