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रविवार, 31 दिसंबर 2017

दर्शन, दर्शनहीनता, और प्रतिदार्शनिकता

समय दर्शन - अध्ययन, अवलोकन, संवेदना और बुद्धि से युक्त दर्शन - की सक्रियता की मांग करता है. दर्शन को दर्शन और दर्शनहीनता अथवा दर्शन और प्रतिदार्शनिकता में भी अंतर स्पष्ट करना होगा क्योंकि इनमें स्वरूप का अंतर नहीं है. दर्शन को यह भी बताना होगा कि दर्शन का उद्देश्य दर्शन का प्राधिकारवाद नहीं है, बल्कि मानवीयता के प्रवाह को अबाध रखना है. दर्शन का एक महती उद्द्देश्य आसुरी तत्त्वों के प्रतिकार के लिए लोगों को  संगठित रखना भी है. एक समय दर्शन को हम इतनी ऊँचाई तक ले गए कि सारी की सारी जमीन ही खो बैठे. 

नीरज कुमार झा

मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

क्या ऐसा भी है?

क्या ऐसा भी है कि समाधान या विश्लेषण हेतु भी समस्याएँ निर्मित की जा रही हों? पता नहीं, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि प्रत्येक व्यक्ति पहले अपने आचरण से समस्या का कारण या निदान होता है. ऐसा भी हो सकता है कि समाधान और विश्लेषण करने वाले ही समस्याओं की निरंतरता के कारक हों. महात्मा गांधी शायद इसलिए वचन और आचरण में ऐक्य की बात करते थे.



नीरज कुमार झा

वैश्वीकरण बनाम चीनीकरण

वैश्वीकरण का घनीभूत होते जाना अपरिवर्तनीय है. समस्या यह है कि वैश्वीकरण की जगह आज विश्व का चीनीकरण हो रहा है. संतुलित वैश्वीकरण के लिए समस्त देशों की इस प्रक्रिया में विश्वास और योगदान जरूरी है. यही वैश्विक शांति और समृद्धि का रास्ता भी है. संयुक्त राज्य अमेरिका तथा अन्य विकसित पाश्चात्य देशों का वि-वैश्वीकरण की तरफ रुझान निश्चय ही लोकलुभावनवाद से प्रेरित है तथा वैश्वीकरण की प्रक्रिया में चीन को बढ़त ही दे रहा है. चीन की तीक्ष्ण शक्ति, जो नम्र और कठोर शक्ति के प्रयोग का योग है, की आंच यूरोप के लिए अब झुलसन सिद्ध हो रही है. दुनियाँ के सभी देश इस चुनौती का सामना करने का रास्ता पाने के लिए व्यग्र हैं. इस सन्दर्भ में भारतीय जनमत की अंतर्मुखी प्रवृत्ति और उदासीनता विस्मयकारी है.



नीरज कुमार झा

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

The Non-existent Coins

Why is worthlessness soaring?
The answer is so obvious, my friends!
When toil is demeaned,
Goodness is devalued,
It is only the worthlessness,
Which is left to hanker after.

When the blind pursuit of moolah,
The craving to control others, and
The exhibition of self,
Become religion,
It is the worthlessness,
Which makes the spheres.

There is nothing we can do,
Except to keep in mind
That existence means humanity;
And humanity means only
The person before you.

When you value the other,
You gain freedom from
The tyranny of nothingness.
And get rid of suffocation,
Which you may think is life.

Niraj Kumar Jha